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________________ चरित्र प्रद्युम्न १७८ ।२७१-२७३। सो योगीके वचनोंपर विश्वास करके यह रति नामकी कन्या उत्कृष्ट पति के प्राप्त करने की इच्छासे यहां वनमें तप कर रही है ।२७४। जिसके विषयमें मुनिराजने कहा था, लक्षणों और गुणोंसे वे तुम ही मालूम होते हो, इसमें अब संशय नहीं रहा है । इस कन्याके पुण्यके प्रभावसे आप यहां पधारे हो। आप दोनोंका जैसा रूप है, वैसा पृथ्वीतलपर दूसरेका नहीं है। आप दोनोंका सम्बन्ध होनेसे ही विधाताका श्रम सफल गिना जायगा ।७५-७६। देवके ऐसे वचन सुनते ही प्रद्युम्नकुमार बहुत प्रसन्न हुए। हर्ष और लज्जासे नीचेको मुख किये हुये वे ऐसे सुन्दर वचन बोले:-मैं तो पुण्ययोगसे भ्रमण करता हुआ यहां वनमें चला आया था। सो इस सुन्दरीको देखते ही कामबाणों से बेधित हो गया हूँ।७७-७८। अतएव तुम्हारे प्रसादसे हम दोनोंका सम्बन्ध हो जाय, तो अच्छा हो। क्योंकि उत्तमोंके संयोगसे ही देहधारियों के दुःखकी शांति होती है ।७९। प्रद्युम्नके ऐसे वचन सुनकर वसन्तध्वज देवको संतोष हुआ। तब उसने तत्काल ही दोनों का विधिपूर्वक पाणिग्रहण करा दिया ।८०-८१। स्त्रीके परम लाभको प्राप्त करके प्रद्युम्नकुमारको सन्तोष हुआ। उसके पश्चात् ही उन्होंने पूर्वके बड़े भारी पुण्यके उदयसे एक दूसरा भी लाभ प्राप्त किया ।८२। जो इस प्रकार है: पाणिग्रहण हो चुकनेके पश्चात् उसी मनोहर वनमें एक सकट नामका असुर, कुमारसे आकर मिला।८३। उसने भी प्रद्य म्नको प्रणाम करके हर्षके वेगमें कामधेनु और वसन्त के समान सुन्दर फूलों का रथ ये दो दिव्य वस्तुएँ भेंट की।८४। इसके पश्चात् प्रद्युम्नकुमारने उसी पुष्परथपर अपनी प्यारो रतिके सहित उस वनसे कूच कर दिया। सो तत्काल ही लीला मात्रमें वे वनसे बाहर निकल आये ।८५। जब भाइयोंने सोलहों लाभोंको प्राप्त करने वाले कुमारको देखा, तब वे सबके सब मलीनमुख हो गये।८६। वह सुन्दर मदनकुमार अपनी रतिके साथ रथमें आरूढ़ होकर प्रानन्द से चला ! उसके For Private & Personal Use Only Jain Educatiemational www.jalary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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