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________________ चरित्र - ।५७। लोक की उत्कृष्ट कान्ति इसी ही में है, इसीमें मनको रमानेवाला रूप है, इसीमें भव्यता है और इसीमें सारा लावण्य भर दिया गया है ।५८। इमहीमें सारे गुणोंका घर है, और इसी में कलाओं का समूह है, अधिक क्या कहा जावै सारी महिमा इमीमें मुद्रित की गई है ।५६-६०। इस प्रकार ध्यानके योगसे निश्चल हुई उस त्रैलोक्य सुन्दरियोंके रूपको जीतनेवाली सुन्दरीको देखकर मदन (प्रद्युम्नकुमार) मदन अर्थात् कामदेवसे विह्वल हो गया। तत्काल ही कामदेवके पांचों वाणोंसे घायल होकर व्यग्रचित्त हो गया और वहीं बैठ गया। इतने ही में वसन्तक नामके देवका आगमन हुा ।६१६३। वह प्रद्युम्न के चरण कमलोंको नमस्कार करके उनके समीप ही बैठ गया। तब कुमारने उस सुन्दरी कन्या के विषय में पूछा-६४। हे महाभाग ! मेरे आश्चर्यका कारण शीघ्र कहो कि यह परमसुन्दरी इस निर्जन वनमें किसलिये रहती है ।६५। यह किसकी पुत्री है, और किसलिये तपस्या करती है ? यह नव यौवन से परिपूर्ण और स्त्रियोंमें जितने गुण होने चाहिये उनकी घर है ।६६। यह सुनकर वसन्तकने कहा हे नाथ ! मेरे वचन सुनो,-एक प्रभंजन नामका विद्याधरोंका स्वामी है। उसकी वाक् नामकी स्त्री है, जो गुणोंकी सागर है। उसके उदरसे रति नामकी विख्यात कन्या उत्पन्न हुई, जो इस समय नवीन यौवनको धारण किये हुये तपस्या कर रही है । यह सुनकर प्रद्युम्नने पूछा, यह किस कारणसे यह कष्ट उठा रही है, ।६७६६। तब वह देव बोला, इसका कारण मैं कहता हूँ, आप सुनें । एक दिन इसके पिताके घर एक योगी आया। आहार करने के बाद राजाने विनयसे पूछा, हे स्वामिन् ! मेरी रतिनामा पुत्रीका होनहार पति कौन है ? ।७०। तब मुनिराजने उत्तर दिया, गजन् ! सुनो, द्वारिका नगरीके राजा कृष्णकी रुक्मिणी रानीका जो प्रद्युम्न नामका सर्वलक्षण सम्पन्न और सर्वविद्यानिधान पुत्र है, वही तेरी पुत्रीका होनहार पति है । वह बड़े भारी साहससे इस प्रकार के लक्षणोंसे युक्त होकर विपुल नामके भयंकर वनमें आवेगा। वही तेरी पुत्रीका पाणिग्रहण करेगा -- Jain Educa international ex For Privale & Personal Use Only www.jagelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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