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प्रद्युम्न
चरित्र
सुशोभित अतिशय ऊचा पर्वत था। उसे दूरसे देखकर वजदंष्ट्र बोला, जो धीर वीर इसमें प्रवेश करके -तथा रमण करके जल्द ही लौट आता है वह चिन्तित पदार्थोको पाकर देवोंके द्वारा पूजनीय होता है । उनके ऐसे वचन सुनकर प्रद्युम्नकुमार जल्दीसे चला ।४२-४४। और ज्योंही उस विचक्षणने वन में प्रवेश किया, त्योंही जयन्तक पर्वतपर उसकी दृष्टि पड़ी।४५। जिसके पसवाड़ेमें जलसे परिपूर्ण और वेगसे बहनेवाली नदी बह रही थी और जिसके किनारेरूप कंठ तमालादि वृत्तोंसे शोभायमान हो रहे थे ।४६। वहां एक तमालवृक्षके नीचे पड़ी हुई शिलाके फलकपर एक कामिनीश्रासन लगाये हुए ध्यान में मग्न हो रही थी। वह रूप और यौवनसे लबालब भरी हुई थी, नासिकाके अग्रभागमें अपनी दृष्टिको जमाये हुए थी, नानाप्रकारके लक्षणोंसे युक्त और गुणोंके पार पहुँची हुई थी, तांबेके समान लाल नखोंसे पाटलके समान स्फटिककी मालाका ध्यानपूर्वक जाप करती थी रेशमका सफेद धोया हुआ वस्त्र पहने थी छूटे हुए बालोंसे उसकी दोनों भौहें ढक रही थी मुखकमलसे निकलती हुई सुगन्धिके कारण भौंरोंके भुण्डके झुण्ड भ्रमण करते हुए उसके मुखकी सेवा करते थे। उन्नत सघन कुचोंके भारसे उसका शरीर नम्रीभूत होरहा था जंघात्रोंसे बालसयुक्त थी और स्वभावसे कृश अर्थात् पतली थी। जिसने हाथीकी चालको अपनी गतिसे जीत ली थी वीणाके समान जिसकी आवाज थी शंखके समान जिसका कंठ था सुन्दर नुकीली नासिका थी कमलके समान सुन्दर और चंचल जिसके नेत्र थे अधिक क्या कहें जिसने अपने रूपसे तीन लोककी स्त्रियों के रूपको जीत लिया था, उस सर्वलक्षणयुक्ता सर्वाङ्गसुन्दरी सर्व विद्याश्रोंमें निपुण और संपूर्ण उत्तम गुणों से शोभायमान सुन्दरीको देखकर प्रद्युम्नकुमार चकित हो गया और विचारने लगा,-४७-५५। क्या यह सूर्यकी स्त्री है ? अथवा चन्द्रमाकी कामिनी है ? अथवा इन्द्राणी ही देखनेके लिये आई है ? कामकी स्त्री रति है, अथवा कान्ति, कीर्ति, किन्नरी और धरणेन्द्र की स्त्री, इनमें से कोई है ? ॥५६.
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