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प्रथम्नः
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आगे आगे वे सब विद्याधर भाई चले ! जिस समय वह नगर की ओर चला, उस समय वे सब भाई भी जिनके कि मलिन मुख थे, नगरकी ओर आगे दौड़ने लगे ।८७-८८। इस उदाहरण से विद्वानोंके गे पुण्य और पापके फल ऐसे प्रगट हुए, जैसे वे स्वयं ( पुण्यपाप) बोल रहे हों कि, पुग्यका फल यह है और पापका फल यह है । यह दृष्टान्त नगरनिवासियोंने प्रत्यक्ष देखा | ८९ |
रति सहित कामदेवका श्रागमन सुनकर इस नगरकी स्त्रियां देखनेके लिये बाहर निकल |९०| कौतुक देखने के लिये याकुल हुई उन सब सरला और चपला दृष्टिवाली स्त्रियोंने अपने मुखचन्द्रोंसे झरोखोंको ढँक दिया । ६१ । कामदेव के रूपपाश में बिंधी हुई अनेक श्रेष्ठ वनितायें अपने २ घरों के काम काज छोड़कर परस्पर झगड़ने लगीं |२| कोई एक स्त्री दूसरे से बोली, तू अपने खुले हुए केशोंको फैलाकर मुझे आगे की ओर क्यों नहीं देखने देती है ? मेरे साम्हनेकी दिशाको तूने क्यों रोक रक्खी है | ३ | और तूने ये अपनी भुजायें मेरे साम्हने क्यों फैला रक्खी है ? मेरे साम्हने से जल्द हट जा और मुझे देखने दे | ६४ | कोई एक अपनी सखीसे कहती है है खालि ! जब प्रद्युम्नकुमारका नयनोंको अमृत के समान लगनेवाला रूप ही नहीं देखा, तब जीतव्य से और उस मनुष्य जन्मसे क्या ? नेत्रोंके पानेकी सफलता तभी है, जब ये दर्शन हों, नहीं तो इनका पाना ही व्यर्थ है। । ९५-६६ । एक और स्त्री जो कुचोंके भारसे झुक रही थी और नितम्बों के भारसे आलसयुक्त हो रही थी और इसीलिये एकाएक चलनेके लिये असमर्थ थी, प्रद्युम्नकुमार के देखने के लिये बाई और अपनी सखी हर्षित होकर बोली, उस कुमारका शरीर जिन परमाणुओं से बना है, वे ही उत्तम परमाए हैं । ६७-६८ उसी माताको धन्य है जिसने उसे अपने उदर में धारण किया होगा। और कोई एक युवती रति के साथ कामदेवको देखकर अपनी बराबरवालीसे बोली, इस मदनालसा सुन्दरीको धन्य है, जो इसके अङ्क में (गोद में) सुशोभित होती होगी । ६६-३००। कई एक ऐसी स्त्रियां जिनके
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