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________________ चरित १७३ गया और पर्वतपर चढ़कर सहसा उसके शिखर को कम्पायमान करने लगा ।२०११ इतने में वहांका । रहनेवाला देव प्रगट हुअा और कुपित होकर प्रद्युम्न के साथ युद्ध करने लगा। लड़ाई में उसे जीतकर विजयी प्रद्युम्नने उससे कंठी, बाजूबंद, दो कड़े और कटिसूत्र (करधनी) ये दिव्य श्राभूषण प्राप्त किये। इसके सिवाय उस असुरने इनकी भले प्रकार पूजा की इसप्रकार सन्मान प्राप्त करके राजकुमार शीघ्र ही लौट आया। उसे देखकर वे सब राजपुत्र जीके जीमें कुढ़कर रह गये और कुपित होकर बराहाकार पर्वत पर ले गये । दूर खड़े होकर विद्याधर पुत्र बोले ।२०२-२०५।। इस शूकराकार पर्वतमें जिसका आकार शूकर के ही समान है, जो कोई प्रवेश करता है, वह शूरवीर पृथ्वीका स्वामी होता है ।२.६। इस वाक्यसे उत्साहित होकर प्रद्युम्नकुमार जल्दीसे दौड़ता हुआ पर्वतपर चढ़ गया। उसके चढ़नेपर पर्वतका शूकरके समान मुख मिलने लगा, तब उसे इसने अपनी कुहनियोंसे विदारण कर डाला।२०७। यह देख बराहमुख नामका महाबली देव प्रद्युम्नके साथ भयंकर युद्ध करने लगा।८। सो पूर्व पुण्यके बलसे प्रद्युम्नने उसे भी जीत लिया। संसार में जितनी सुखकारी वस्तुएँ हैं, वे सब पुण्यवानोंको सुलभतासे प्राप्त हो सकती हैं । दुष्कर नहीं हैं ।२०६। उस देवने जयशंख नामका शंख और पुष्पमयी धनुष्य, ये दो दिव्य वस्तुएँ प्रद्युम्नकी पूजा करके प्रदान की।१०। लाभ लेकर आते हुए विजयी प्रद्युम्नकुमारको देखकर वे मूर्ख फिर क्रोधित हुए और उसे पद्म नामके वनमें ले चले ।११। पहलेकी तरह दूर खड़े होकर वजदंष्ट्र बोला यह पद्मवन पृथ्वीमें अतिशय प्रसिद्ध और रमणीय है ।२१२। इसमें जो कोई जाता है और जल्दीसे भयरहित होकर लौट आता है, उसके हाथमें निश्चय समझो कि, संसारका आधिपत्य आ जाता है ।२१३। उसके वचनोंसे सन्तुष्ट होकर बलवान प्रद्युम्नकुमार बड़े वेगसे वहां गया। क्योंकि लाभकी श्राशासे ही उद्यम होता है। पद्मवनमें जानेसे लाभ होगा, इस विचारसे उसने वहां जानेमें क्षणमात्र भी विलम्ब न किया ।२१४। उस Jain Educa www.jelbrary.org For Private & Personal Use Only international
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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