SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रदान . १७२ चरित्र हाथीका आकार धारण करके याया, उसके साथ प्रद्युम्नने बड़ा विषम युद्ध किया । और उसे बल्गन तर्जनमें मदरहित कर दिया। तब वह गज विनयपूर्वक बोला, हे नाथ मैं आपका सेवक कामगज हूँ । समय पड़ने पर मुझे स्मरण कीजिये । ऐसा कहकर उसने कामदेव की पूजा की। कामकुमार इस तरह देवपूजित होकर लौट आये। तब वे सबके सब राजकुमार उन्हें अनुबालक शिखर पर ले चले। वहां दूर खड़े होकर वज्रदंष्ट फिर बोला, इस पर्वतपर जो शूरवीर आरोहण करता है, वह पृथ्वीका एकाधिपति होता है । इसके वचनसे संतुष्ट होकर प्रद्युम्न कुमार साहसपूर्वक शिखर पर चढ़ गया । वहां भी पहले की तरह चरणों के प्रहार से सर्पके आकारको धारण करनेवाला दैत्य सचेत हो गया जिससे वह बड़े वेग से क्रोधित होकर साम्हने आया । उसने ताड़ना और दुर्वचनोंसे बड़ा भारी युद्ध किया । परन्तु अन्तमें उसे प्रद्युम्नने बहुत ही जल्दी जीत लिया। तब उस दैत्यनाथने संतुष्ट होकर अश्वरत्न (घोड़ा) छुरी, कवच (जिरहवस्तर) और मुद्रिका ये दिव्य चीजें भेंट की और भक्तिपूर्वक प्रद्युम्न की पूजा की। इसप्रकार से वह नवमें लाभकी प्राप्ति करके लौट आया। उसे आता देखकर वे मूर्ख विद्याधर कुमार आपस में विचारने लगे कि, यह पापी फिर बड़ा भारी लाभ लेकर आ गया। अब इस दुष्टका क्या करना चाहिये ? । १८५ -१६६। इसके पश्चात् प्रद्युम्न कुमारको वे सब शरावास्य नामक महापर्वत पर ले गये । उस पर्वतको देखकर बड़ा भाई बोला, भाइयों ! मेरे वचन सुनो, -1 , - ११६७। जो बलवान मनुष्य निःशंक और निडर होकर इस पर्वत पर चढ़ता है, वह निश्चयपूर्वक सम्पूर्ण विद्याधरों की राज्यलक्ष्मीको प्राप्त करता है । | १६ | इसलिये तुम सब भाई यहीं ठहरो, मैं वहां जाकर और अपना इच्छित लाभ लेकर शीघ्र ही याता हूँ । १९६ । उसके इसप्रकार वचन सुनकर प्रद्युम्न कुमार बड़े भाईसे बोला कि नहीं, आप न जावें, शरावाकार पर्वत पर में ही जाता हूँ |२००| बड़े भाईकी आज्ञा लेकर प्रद्युम्नकुमार शीघ्र ही For Private & Personal Use Only www.jain terary.org Jain Educationtemnational
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy