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________________ प्रद्युम्न तब चरित्र ( ७ यदि आप आज्ञा करो, तो मैं वृक्षके फल प्रास्वादन करूँ ७०। प्राज्ञा मिलते ही प्रद्युम्न शीघ्र ही वृक्षके पास गया, निःशंकरूप वृक्षपर चढ़ गया और उसकी डालियां जोरसे हिलाने लगा।७१। तब वहां रहनेवाला देव बन्दर का रूप धारण कर प्रगट हुआ, जिसका मुख लाल हो रहा था, नेत्र क्रोधसे सुर्ख हो रहे थे, भौंहें टेढ़ी हो रही थीं और रूप महा भयानक दीख पड़ता था। वह प्रद्युम्नसे निंद्य वचन बोलने लगा,--अरे दुराचारी नीच मानव ! तू मेरे सहकार वृक्षपर क्यों चढ़ा ? और डालियोंको हिलाकर तू फलोंको पृथ्वीपर क्यों गिरा रहा है ? ७२-७४। बन्दरके दुर्वचन सुनते ही कुमार कुपित हुआ और उससे लड़नेको उद्यत हुआ। दोनों में बहुत समय तक युद्ध हुआ। अन्तमें जब प्रद्युम्नने उसे पूंछ पकड़कर जमीन पर पटकना चाहा, तब वह भयभीत होकर प्रगट होगया और बोला, मुझे छोड़ दो, मुझ दीन पर कृपा करो ।७५-७७। ऐसा कहकर देवने एक मुकुट, एक अमृतमाला और दो आकाशगामिनी पादुका कुमारको भेंट की।७८। उस दैत्यको अपना बनाकर और उससे पूजित हुआ प्रद्युम्नकुमार झाइसे उतरकर थाने लगा। यह देखकर वे सब भाई क्रोधित हुए और कहने लगे हम इसे अभी मारेंगे । वजदंष्ट्र बोला, भाइयों उतावली मत करो, स्वस्थ होकर बैठो। इतनेमें प्रद्युम्न आ पहुँचा। तब वे सब कुटिल अभिप्राय धारण करने वाले उससे मिले और उसे कपिल नामके वनमें ले गये।। उस कपिलवनसे कुछ दूरी पर खड़े होकर वजूदंष्ट बोला, जो मनुष्य इस सुन्दर वनमें प्रवेश करता है, वह अपने इच्छित पदार्थों को पाकर पृथ्वीका स्वामी होता है। विजयाद्ध के रहनेवाले वृद्ध विद्याधरोंके मुंहसे यह बात सुनते आते हैं, इसलिये तुम सब यहीं ठहरो, मैं शीघ्रतासे जाकर मनचिंतित पदार्थों को प्राप्त करके अाता हूँ ॥१७६-१८४। उसके इस वचनसे संतुष्ट होकर प्रद्युम्नकुमार प्रसन्नतासे उस वनमें घुस गया और वृक्ष पर चढ़ गया। इतनेमें वहां एक असुर अंजनके समान काले Jain Educal International For Private & Personal Use Only www.jhalibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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