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________________ प्रद्युम्नने असुर को हरा दिश। वह चरणोंमें गिरकर बोला, महाराज ! निःसंदेह मैं आपका किंकर हूँ, आप मेरे स्वामी हो ।४०-४॥ पश्चात् देवने प्रद्युम्नकी पूजा की और एक मकरकी ध्वजा उन्हें प्रदान की। उसी समयसे संसार में प्रद्युम्नका मकरकेतु नाम प्रसिद्ध हुआ।४२॥ प्रद्युम्नकुमारको लाभ लेकर आता देख भाइयोंका मुंह काला पड़ गया। तो भी वे ऊपरी प्रसन्नता प्रगट करके मायाचारीसे उससे मिले और फिर एक जलते हुए अग्निकुण्डको दिखाने के लिये ले गये । कुण्डसे दूर खड़े होकर वजूदष्ट्र बोला-भ्रातागण ! एक बात सुनो। वृद्ध विद्याधरोंने एक सबको हितकारी बात बताई है कि जो कोई पुरुप इस प्रज्वलित अग्निकुण्डमें प्रवेश करेगा, उसको मनोगंछित पदार्थ मिलेगा, तथा वह राजा भी हो जायगा ।४३.४६ । यह बात सुनते ही प्रद्युम्न सन्तुष्ट होकर साहससे निःशंक होकर अग्निकुण्डके समीप आया और उस असुरसेवित कुण्डमें कूद पड़ा। जब प्रद्युम्नने उसे चहुँ ओरसे दलमलित किया, तब वहांका देव क्रोध से लाल मुख करके प्रगट हुआ।१४७-१४९। स्मर अर्थात् प्रद्युम्न कामदेव और दैत्यका घोर युद्ध हुआ। अन्तमें देवका पराजय हुआ। वह सन्तुष्ट होकर प्रद्युम्न के पांव पड़ने लगा और मनोहर वचन बोला, महाराज मुझपर प्रसन्न होश्रो,-और कृपा करके ये अग्निके धोये हुए तथा सुवर्ण तन्तुके बने हुए दो वस्त्र श्राप ग्रहण करो ।५०-५१॥ हे महाबली अाजसे मैं आपका दास बन गया। ऐसा कहकर जब देवने विदा किया, तब कुमार भेट लेकर कुण्डके बाहर निकल पाया ।५२। उसे देखते ही वे सबके सब भाई अपने मनमें अतिशय क्र द्ध हुए और अपनी इच्छा पूर्ण करनेके लिये उसे एक मेषाकार पर्वतपर ले गये । पर्वतके निकट खड़े । होकर वजदंष्ट्र बोला, जो कोई धीरवीर बलवान पुरुष निःशंक होकर इस पर्वतपर जावेगा, वह मनोवांछित पदार्थ पावेगा, ऐसा अनुभवी विद्याधर कहते हैं ।५३-५४। तब भाईको नमस्कार करके पुण्यवान प्रद्युम्नकुमार प्रसन्न होकर शीघ्र ही मेषाकार पर्वतपर गया ।५५। जब वह सरल परिणामो Jain Educa international 83 For Private & Personal Use Only www.library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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