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प्रद्युम्न
चला, उधर प्रद्युम्न भी कुपित होकर सामना करने लगा। दोनों ओरसे बल्गना तर्जना चपेटिका और । मुष्टियोंसे चिरकाल तक मल्लयुद्ध हुा । परन्तु जब राक्षसने देखा कि, प्रद्युम्न अजेय है, जीता नहीं || चरित्र जा सकता है, तब उसके पूर्वपुण्यके प्रभावसे वह भक्तिपूर्वक चरणों में गिर पड़ा ।१०-१३। पश्चात् उसने कमल नालिके तंतुओंके समान दो बारीक चंवर, एक निर्मल छत्र, एक पवित्र रत्न, एक सुन्दर तलवार, वस्त्राभूषण, वा पुष्प इतने पदार्थ प्रद्युम्नकुमार को भेंटमें दिये और कहा,-१४-१५। हे नाथ मैं आपका किंकर हूँ, आप मेरे स्वामी हो। तब कुमार उसे वहीं स्थापन करके छत्र चँवरादि साथमें लेकर उस विकराल कालगुफासे बाहिर निकल आया ।१६।
___ जब दुष्ट भ्राताओंने देखा कि, प्रद्युम्न फिर भी दैवयोगसे बच गया और दिव्य वस्त्राभूषण पहने हुए, देवसे पूजित होकर, सूर्यके समान प्रतापपुंज दिखाता हुअा, प्रसन्नतासे चला आ रहा है, तब उनका मुख उदास पड़ गया ।१७। इसप्रकार जब द्वितीय लाभ सहित पुण्यात्मा प्रद्युम्न भाइयोंके पास आया तब वे ऊपरी प्रसन्नतासे फिर मिले और उस भोले स्वभाव वाले राजकुमारको तीसरी नाग नामकी गुफाकी तरफ ले गये ।१८। गुफासे दूर खड़े होकर वज्रदंष्ट्र धूर्तेश पूर्ववत् मायाचारीसे बोलाजो कोई इस गुफामें शीघ्रतासे प्रवेश करेगा उसे चिन्तित पदार्थ प्राप्त होगा ।१६। इसकारण अबकी बार तो मैं ही जाता हूँ और शीघ्र देवदत्त लाभ लेकर लौट आता हूँ। तुम यहीं ठहरो।१२०। तब विनयसहित प्रद्युम्न कामदेव बोले भाईमाहब कृपाकर पहलेके समान अबकी बार भी मुझे अाज्ञा दो तो लाभके लिये में इस गुफामें भी जाऊ।२१। तब वजूदंष्ट्र बोला-इसमें क्या पूछते हो? तुमसे में क्या कहूं जैसे तुम हमें प्रिय हो वैसा कोई दूसरा नहीं है ।२२। अतएव तुम ही खुशीसे जागो और पूर्वपुण्यके प्रभावसे जयसहित मनोहर लाभ ले पायो ।२३। तब कुमार प्रसन्नतासे तत्काल ही उस गुफामें निर्भय होकर चला गया। और वहां उसने गुफाके स्वामी नागराजसे भयङ्कर युद्ध करके उसे
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