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________________ चलो अब अानन्दके साथ घर चलें। ऐसा कहकर ज्यों ही वे लोग घर चलनेके लिये उठे त्यों ही । प्रद्युम्न || उन्होंने गुफासे निकलते प्रद्युम्नको देखा ।।९५-९७। उसे उत्तमोतम आभूषण पहने हुए और देवोंसे चरित्र पूजित देखकर वे सब राजकुमार गर्वगलित हो गये। परन्तु अपने मनमें भावको छुपाकर मायाचारी से उससे मिले और फिर उस भोले किन्तु बलवान प्रद्य म्नको काल गुफाकी ओर ले चले ।।८-६६। गुफासे कुछ दूर सब खड़े हो गये तब वजदंष्ट्र धूर्तेश बोला-जो कोई इस गुफाके भीतर जावेगा | उसे अनेक सुखदायक इष्ट वस्तुओंकी प्राप्ति होगी इसलिये हे भ्रातागण तुम किंचित् काल यहीं ठहरो मैं गुफामें जाता हूँ और अभी कार्य सिद्ध करके लौट आता हूँ।१००-१०१। तब सरलस्वभावी प्रधु - म्नकुमार बोला भाई साहब कृपाकर मुझे ही गुफामें भेजो तो अच्छा हो ।२। यह सुनकर वजदंष्टने खुशीसे उसे जाने की आज्ञा दे दी। तब भोला प्रद्युम्न शीघ्र ही गुफामें इसप्रकार चला गया जैसे कोई मनुष्य प्रसन्नतासे निडर होकर अपने घर में प्रवेश करता है ।३। काल गुफाके भीतर फँसते ही श्रीप्रद्युम्नकुमारने एक वज्रपातके समान अतिशय डरावना कानोंको बुरा लगने वाला कर्कश शब्द किया।४। जिसके सुनते ही गुफानिवासी राक्षसेन्द्र चौंक उठा, और क्रोधसे अरुण नेत्र किये हुए तत्काल प्रगट हो गया। प्रद्यम्न से बोला अरे पापी ! दुराचारी ! नराधम ! तूने मेरे पावन स्थानको भ्रष्ट क्यों किया ? क्या तूने इस गुफाका हाल पहले नहीं सुना था, जो यमराजके घर जानेके लिये यहां आया है ।५-७। उसके उक्त वचन सुनकर बलवान प्रद्युम्न बोले, रे नीच ! केवल बकनेसे ही यहां पुरुषार्थ प्राप्त नहीं होगा। यदि तुझमें अद्भुत शक्ति है, तो मुझसे आकर युद्ध कर । रे नीच ! जिनका केवल नीच पुरुषों में व्यवहार होता है, ऐसी गाली वृथा क्यों देता है ? ।९९रे शठ यदि तू शूरवीर है, धीर है, और रणकलामें चतुर है, तो शीघ्र ही मुझसे युद्ध कर ! विलम्ब क्यों कर रहा है ? उसक तेजस्वी वाक्योंको सुनकर वह राक्षसराज क्रोधित होकर || L library.org For Private & Personal Use Only Jain Educ Interational
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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