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________________ । हो रहा है । उसमें एक गुणोंका सागर कनकनाभि नामका राजा राज्य करता था, जिसकी अनिला || प्रद्युम्न नामकी रानी पतिव्रताकी धुरीको धारण करनेवाली थी।५७-५८। राजा रानी इच्छानुसार क्रीड़ा करते चरित हुए सुखसे राज्य करते थे, जिससे आनन्दमें मग्न होकर उन्होंने व्यतीत होता हुआ समय नहीं जाना ॥५६। कुछ दिनोंमें स्वर्गसे चयकर एक अतिशय सुन्दर और गुणवान पुत्रने जो कि देवोंके समान था, उनके यहां अवतार लिया। उसका हिरण्यनाभि नाम रक्खा गया। राजा कनकनाभि ने चिरकाल पर्यन्त राज्य करके और निरन्तर सुख भोगकर एकदिन राज्यलक्ष्मीको विनाशीक और यौवनको क्षणभंगुर जान कर विषयोंसे विरक्त चित्त हो वैराग्यसे अपने हृदयको विभूषित किया। और अपना सारा राज्य पुत्रको सौंप दिया तथा परम उदासीनता सहित वनमें जाकर श्रीपिहिताश्रव मुनिराजको परम भक्तिसे अष्टांग नमस्कार किया और उसने दिगम्बरी दीक्षा ले ली।६०-६३॥ पश्चात् गुरुके पास द्वादशाङ्ग पठन किया और घोर तपश्चरण किया, जिससे घातिया कर्मोंका विनाश कर श्रीकनकनाभिने केवलज्ञानको प्राप्त किया।६४। भव्यजीवोंको उपदेश दिया और चार अघातिया कर्म नष्ट कर मुक्तिलक्ष्मीके गृहको प्राप्त किया, जहां अनन्ते सिद्ध विराजे हैं और अनन्त प्रात्मीक सुखका अनुभव करते हैं ।६५। तदनन्तर राजा हिरण्यनाभि कंटकरहित और शत्रुसे रहित होकर राज्यका कारभार उत्तमतासे चलाने लगा।६६। एक दिन जब हिरण्यनाभि राजा अपने महलके ऊपर तिष्ठा हुआ था, उस समय उसने बड़ी भारी विभूति और बड़ी भारी सेनासहित किसी दैत्येन्द्रके राज्यको देखा। उस आश्चर्य कारक राज्य सम्पदाको देखकर उसने अपने मन में सोचा कि, मेरी राज्य सम्पदा इससे बिल्कुल हीन है। इसलिये धिक्कार है, मेरे जीवनको वा मेरी राज्य विभूतिको ।६७६८। मैं भी ऐसी ही कोई विद्या साधन करूं, जिससे मुझे मनोवांछित राज्य विभव प्राप्त हो । बहुत बार विचारकर उसने इसी बातका दृढ़ संकल्प कर लिया और अपने छोटे भाईको राज्यका कारभार सम्हलाकर आप विद्या साधनार्थ www. For Private & Personal Use Only Jain Educ brary.org Interational
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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