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________________ चरित्र वहांके राजा कालसंवरकी सभामें जाकर पहुँचे ।।८-९९। नारद मुनिको आता देख राजाने अपने सिंहासनसे उठ सन्मुख जाकर और भक्तिपूर्वक अर्घपाद्यादि देकर उनका यथोचित सन्मान किया। तब नारदजी आशीर्वाद देकर सुन्दर श्रासनपर विराज गये और थोड़ी देर तक प्रमभावसे राजा कालसंवर से वार्तालाप करते रहे । पश्चात् वे बोले:-राजन् ! मैं तुम्हारा अन्तःपुर (रणवास) देखना चाहता हूँ ।४००-२। राजाने उत्तर दिया हे स्वामिन् ! बहुत अच्छा, आप अपने चरणकमलकी रजसे मेरे गृहको पवित्र कीजिये ।३। तब नारदजी तत्काल ही कृष्णपुत्रको देखनेकी उत्कंठासे रणवासमें चले गये।४। रानी कनकमालाने नारद मुनिको पाया देखकर भक्तिपूर्वक नमस्कार किया, और अर्घपाद्य तथा आसन देकर उनका सत्कार किया। थोड़ी देर बैठकर मुनि बोले, रानी : मैंने सुना है कि तेरे गूढगर्भसे पुत्रकी उत्पत्ति हुई है ? तब वह बोली, हे नाथ आपके चरणकमलोंके प्रसादसे हुआ तो है। यह सुनकर नारदजी बोले, देवी तू अपने सुखकारी पुत्रको दिखा तो सही, कहां है ? तब रानी कनकमालाने प्रद्युम्नकुमारको लाकर मुनिके चरणों में डाल दिया। मुनिने उसके सिरपर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया कि “हे पुत्र तू चिरंजीव रह ! चिरकाल सुखी रह ! और अपने माता पिताओंके मनोरथको सफल कर ।" ।५-६ । नारदजीने फिर रानी से कहा, हे देवी! तू बड़ी भाग्यशालिनी है जो तेरे ऐसा भव्य और सर्व शुभलक्षणोंका धारक पुत्र उत्पन्न हुआ है। मेरी अभिलाषासे तेरा यह पुत्र चिरकाल जीवित रहे ।१०। इसप्रकार कृष्णपुत्रको देखकर प्रफुल्लितवदन नारदजी अन्तःपुरसे बाहर निकल आये और रुक्मिणीके महलको जानेके मनोरथसे द्वारिकाको रवाना हो गये ।११। द्वारिकामें पहुँचते ही नारदजी पहले मधुसूदन श्रीकृष्णनारायणसे मिले और पीछे रुक्मिणीसे मिले । रुक्मिणी को प्रद्युम्नविषयक सम्पूर्ण वृत्तांत, जो सीमंधरस्वामीने दिव्य ध्वनिसे वर्णन किया था, कह सुनाया। अर्थात् प्रद्युम्नका स्थान, उसकी पूर्वभवकी वार्ता, वय, रूप, लक्षण, उसके आगमनका काल वा चिह्न ___Jain EducaHDHintemational For Privale & Personal Use Only www.jamelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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