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प्रधान
रानी हुई है ।८५। और जो राजा मधुका जीव तपश्चरणके प्रभावसे सोलहवें स्वर्गमें देव हुआ था, वह देवगतिके दिव्यसुखको भोगकर और आयुके अन्तमें वहांसे चयकर पूर्व पुण्य के प्रभावसे द्वारिका || चरित्र नगरीमें यादवोंके श्रेष्ठ कुलमें कृष्णनारायणकी रानी रुक्मिणीके गर्भ में आया है।८६.८७। और कैटभ का जीव कुछ दिन पश्चात् कृष्णकी जाम्बवती रानीके गर्भ में आया है।८८। और जो राजा हेमरथ अपनी चन्द्रप्रभा रानीके वियोगमें पागल होगया था वह दुःखसागररूप संसारमें चिरकालपर्यन्त नीच योनियोंमें परिभ्रमण करता हुअा कर्मयोगसे मनुष्य होकर और फिर कुतपसे मरकर धूमकेतु नामका असुरोंका नायक देव हुअा।८६.९०। यही दैत्य विमानमें बैठकर आकाशमार्गसे क्रीड़ा करता हुआ जा रहा था, सो दैवयोगसे रात्रिके समय उसका विमान द्वारिका नगरीमें रुक्मिणीके महल पर, जिसमें कि बालक था, आते ही कुण्ठित हो गया। तब उसे ज्ञानसे प्रगट हुअा कि, पूर्वभवमें जिस मधुराजा ने छल बलसे मेरी स्त्रीको हरा था, वही मेरा बैरी यहां जन्मा है। तब वैर भँजानेके विचारमें वह दुष्ट दैत्य बेचारे छहदिनके छोटे बालको हरकर ले गया, ऐसा जानकर हे नृपति किसीसे बैर कदापि नहीं करना चाहिये ।। १.६३। इस संसारमें बैर भयंकर दुःखका देने वाला है इससे धर्मका विनाश होता है और नरकादि कुगतिमें घोर वेदना सहनी पड़ती है ।९४। ज्ञानवानोंको संसारके कारणभूत बैर विरोधका ऐसा कटुक परिणाम जानकर उसे सर्वथा त्यागदेना चाहिये ।९५।
इसप्रकार श्री सीमंधरस्वामीकी दिव्यध्वनिसे पद्मनाभि चक्रवर्ति आदि श्रोतागणोंने प्रद्युम्नकुमारका सम्पूर्ण वृत्तान्त सुना, जिससे सर्व जीवोंके परिणामोंमें अतिशय शांति स्थापन हो गई ।।६। कृष्णपुत्रका वृत्तांत सुनकर नारद मुनि अत्यन्त प्रफुल्लित हुए और अपने कार्यकी सिद्धि हुई जानकर तीर्थेश्वरको अष्टांग नमस्कार करके समवसरण से बाहर निकल आये ।।७। श्रीकृष्णके प्रेमबन्धनकी प्रेरणासे उनके पुत्रको देखनेकी अभिलाषासे विजयाद्ध पर्वतके मेघकूट नामक नगरको प्राप्त हुए। और
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