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________________ प्रद्युम्न १५५ - - - मुनि महाराज बोले, हे महामति राजा ! जिन भगवान के कहे हुए दशप्रकारके धर्मको मैं संक्षेपमें ।। कहता हूँ जिसके प्रभावसे भव्य जीवोंको स्वग मोक्षका सुख सहजमें मिल सकता है, अन्य सामान्य चरित्र वस्तुत्रोंकी तो वार्ता ही क्या है ? ।७१-७२। जो विवेकी जीव हैं, उन्हें सम्यक्त्व सहित दश प्रकारका धर्म तथा बारहों व्रत बड़ी भक्तिसे धारण करना चाहिये ७३। इस संसारके चरित्रको दुःखदाई और असार जानकर जिनेन्द्रकथित दशप्रकार के धर्मका ही शरण लेना उचित है। धन, धान्य, कोश, रत्न, कुटुम्बादिक किसीमें सार नहीं है ।७४-७५। धर्मका स्वरूप सुनते ही राजा मधु परम वैराग्यको प्राप्त हुअा। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्रको विधिपूर्वक राज्यका कार्यभार सौंपकर दिगम्बर मुनियोंकी पदवी को प्राप्त कर ली अर्थात् उसने दिगम्बरी दीक्षा ले ली, उसकी परिणीता पट्टरानी ने भी आर्यका व्रत अङ्गीकार किया ७६-७७। इसी प्रकार कैटभने भी जो कि मधुका छोटा भाई था, अपनी स्त्रीसहित दीक्षा धारण कर ली अर्थात् कैटभ मुनि होगया और उसकी पत्नी आर्यिका हो गई।७८। जब चन्द्र. प्रभाने देखा कि मैं दोनों ओरसे भ्रष्ट हुई मेरा पति तो राजकाज छोड़कर मेरे विरहमें पागल हो गया और राजा मधु दीक्षा धारणकर नग्न दिगम्बर हो गया। तब वह भी अतिशय भक्ति भावसे आर्यिका हो गई ७६॥ इस प्रकार इन सर्व जीवोंने वैराग्यसहित दुर्धर तपश्चरण किया और गुरुभक्तिमें परायण होकर । अनेक जैन शास्त्र पठन किये, जिससे शास्त्र रहस्यके पूर्ण वेत्ता होकर पुण्ययोगसे समाधिमरण करके वे सबके सब स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।८०-८१। चन्द्रप्रभा का जीव देवांगनाकी अवस्था राजा मधुके जीवके साथ चिरकाल तक सुख भोगकर मलिन कर्मके योगसे अच्युत स्वर्गसे चयकर विजयाद्ध पर्वतपर गिरिपत्तन नामके नगरमें जो हार नामका राजा और हरिवती नामकी रानी थी, उनके कनकमाला ! नामकी पुत्री हुई।८२-८४। सो यही कनकमाला मेघकूट नामके रमणीक नगरके राजा कालसंवरकी । Jain Educal interational For Privale & Personal Use Only www.atelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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