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________________ प्रद्यम्त तरफ आये। उन्हें आये देखकर राजा मधु और चन्द्रप्रभा हर्षित होते हुए सन्मुख गये ।५४-५६। ___ पद्युम्न | ऋषीश्वरकी अतिशय भक्तिपूर्वक तीन प्रदक्षिणा देकर राजाने कहा, "भगवन् ! तिष्ठो तिष्ठो आहार चरित्र पानी शुद्ध है" ॥५७। फिर उन्होंने मुनिराजको जन्तुरहित आसनपर बिठाया, आचमन कराया, उनके भक्तिभावसे चरण प्रक्षालन किये और चरणोदकको नमन करके अपने मस्तकपर चढ़ाया ।५८। फिर मन वचन कायकी शुद्धि सहित मुनिराजके चरण कमलोंकी पूजा की, वंदना की और अपनेको पवित्र किया ।५९। पश्चात् राजा मधुने चन्द्रप्रभारानीके सहित कुशीलादि पापोंका प्रत्याख्यान करके त्याग करके शुद्ध परिणामोंसे नवधा भक्तिपूर्वक मुनिराजको आहार दान दिया और महान पुण्य उपार्जन किया ।६०-६१। जब अन्तरायको टालकर मुनिवरने निर्विघ्न पारणा कर लिया, तब उन्होंने "अक्षय दान हो" ऐसा आशीर्वाद दिया।६२। जिसके प्रभावसे रानाके यहांपर पंचाश्चर्य हुए । सो ठीक ही है "जो कार्य भावसे किया जाता है, वह निश्चयसे सफल होता है”।६३। ध्यान तथा शास्त्राभ्यासमें! परायण रहनेवाले तथा पर-पदार्थ मात्रमें ममत्व भावको न धारण करनेवाले वे मुनिराज अाहार ग्रहण कर लेनेके बाद वनमें बिहार कर गये और वहां अात्मस्वरूपके ध्यानमें दत्तचित्त हो गये, जिसके प्रभावसे उन्होंने चार घातिया कर्मो का नाशकरके सुर असुरोंद्वारा पूज्य दिव्य केवलज्ञानको प्राप्त किया १६४.६५। वनपालके मुखसे यह शुभ संवाद पाकर राजा मधुने अानन्दभेरी बजवाकर सारे नगर निवासियों को सचेत कर दिया और गजपर सवार होकर अपने कुटुम्बी तथा परिजनोंके साथ भक्ति. पूर्वक वन्दना के लिये चल पड़ा। जब उसने केवली भगवान को देखा, तब हाथीसे उतर कर और राजचिन्होंको छोड़कर अष्टांग नमस्कार किया। जिसके उत्तरमें मुनिराजने “धर्म वृद्धि हो” ऐसा प्राशीर्वाद दिया। मधु महाराजने विनयपूर्वक धरतीमें बैठकर और हाथ जोड़कर निवेदन किया कि, हे प्रभो मेरे ऊपर कृपा करके मुझे जिनधर्म का स्वरूप समझाइये ।६६-७०। राजाके प्रश्नको सुनकर Jain Edalon intemational For Privale & Personal Use Only wwwelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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