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________________ अद्युम्न चरित्र विनयसे बोली, हे स्वामी, परस्त्री गमनमें कौनसा ऐसा बड़ा पाप है जो यह बेचारा रूपयौवनसम्पन्न पुरुष शूली पर चढ़ाया जाता है ? ।३०.३३॥ राजा मधु अपने कुकर्मकी याद भूलकर बोला-प्रिये, यह महान वज्रपाप है। इससे बढ़कर कोई दूसरा पाप नहीं है ।३३। यह सुनकर चन्द्रप्रभाने फिर कहा, मुझे तो यह कोई पापका काम नहीं दीखता श्राप वृथा ही बेचारे को शूली देते हो। तब राजा मधुने शास्त्र परिणाम सहित प्रत्युत्तर दिया कि, - श्लोकः-परस्त्रीगमनं नूनं देवद्रव्यस्य भक्षणं । सप्तमं नरकं यांति प्राणिनो नात्र संशयः॥ अर्थात्-परस्त्री सेवन करनेसे और देवद्रव्यको हजम करजानेसे मनुष्य सातवें नरकको प्राप्त होता है इसमें सन्देह नहीं है ।३४-३५। यदि समस्त पाप एक तरफ रक्खे जावें और परस्त्रीसंगमरूप पाप दूसरी बाजू रक्खा जाय, तो परदारासेवनका पाप समस्त पापोंकी अपेक्षा वजनदार निकलेगा, ऐसा शास्त्रमें लिखा है । इसलिये निश्चय जानो कि इससे बढ़कर महान् पाप नहीं है । परस्त्रीके लम्पटी इस लोकमें कलंकित होते हैं, राजद्वारा बध बंधनके दंडको पाते हैं, और परलोकमें नरकको प्राप्त होते हैं। इसलिये पराई स्त्री सर्वथा त्यागने योग्य है ।३६-३७। पराई स्त्री भोगी हुई वस्तु अर्थात् उच्छिष्टके समान है तथा बुद्धिमानोंको निंदित धनधान्यका विनाश करनेवाली, पापकी खान और लड़ाईकी जड़ है अत. एव परनारीसेवन सर्वथा त्यागने योग्य है ॥३८॥ राजा मधुके ऐसे वचन सुनकर रानी चन्द्रप्रभा बोली:-यदि परस्त्रीसेवन करना सचमुचमें पातक है और आप पुण्य पापके स्वरूपको भली भांति जाननेवाले हैं, तो हे नाथ ! मुझ पराई स्त्री को आपने छल करके क्यों हरी ? ॥३६-४०। आपने न मेरी मेरे पिताके घर जाकर कुंवारी अवस्था में मंगनी की । और न मेरे साथ विवाह किया फिर आपने मेरा हरण क्यों किया, मेरा शीलभङ्ग क्यों किया ? ॥४१॥ चन्द्रप्रभाके ऐसे वचन सुनकर राजा मधु बहुत लज्जित हुश्रा और उत्कृष्ट वैराग्यको प्राप्त - Jain Educatiemational For Private & Personal Use Only www.jainedorary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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