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चरित्र
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| ऐसी दशाको देखकर वह शोक करने लगी और उसके दुःखको देखकर स्वयं दुःखित होती हुई विचागुन्न रने लगी-धिक्कार है मेरे जीवनको, मैं महापापिनी हूँ जो मेरे वियोगमें मेरे पतिको ऐसी दशा हो रही १५१॥ है और मैं राजा मधुमें रम रही हूँ धिक्कार है इस स्त्रीपर्यायको जिसमें सदाकाल परवश रहना पड़ता
है। इस प्रकार जिस समय धायके साथ महलमें रानी चन्द्रप्रभा अपनेको बारम्बार निंद रही थी उसी समय वहां राजा मधु आ पहुँचा ।१६-१६।
रानी चन्द्रप्रभा अपने गूढ़ दुःखको छुपाकर उसके सन्मुख खड़ी हो गई और अपने हाथोंसे उसके हाथ पकड़कर प्रेम सम्भाषण किया। राजा भी पूर्वके समान स्नेहसे उस गौरवशालिनी रानीको लेकर महलके ऊपर छतपर लेगया ।२०-२१। जिस समय राजा चन्द्रप्रभा सहित अानन्दसे शरदऋतु सम्बन्धी चांदनी की शोभा देख रहा था उसी समय एक दूसरी घटना हुई सो इस प्रकार है कि-नगर का चंडकर्मा नामका कोटवाल एक पुरुषको दृढ़तासे बांधकर लाया और राजमहलके ऊपर जाकर राजा को नमस्कार करके बोला महाराज इम युवा पुरुषने परस्त्रीका सेवन किया है इसकारण मैं इसे बांधकर आपके पास लाया हूँ । इसने जैसा अपराध किया है वैसा इसे दंड मिलना चाहिये। ऐसा कहकर और हाथ जोड़कर कोटवाल खड़ा रहा ।२२-२५। तब क्रोधायमान होकर राजा मधुने हुक्म दे दिया, कि कोटवाल ! जल्दी जानो और इस पापीको शूलीपर चढ़ादो। जो पापोंसे डरनेवाले राजाओंके आगे तो दोष करना तो दूर रहा, दोष करनेवालोंकी वार्ता भी विवेकी जन नहीं कर सकते हैं ।२६२७। राजाके वचन सुनकर और जीमें अत्यन्त क्रोधित होकर रानी चन्द्रप्रभा विनयसे गोली, हे नाथ ! मेरी बात सुनो। यह पुरुष रूपवान् और युवा है। इसको आप क्यों प्राणरहित करनेकी आज्ञा देते हो ? इसने ऐसा क्या अपराध किया है ? ॥२८-२६। मधुने उत्तर दिया-हे विचक्षण देवी, इस पापीने पराई स्त्रीका सेवन किया है । और इस पापका यही दंड है दूसरा नहीं है । तब रानी मुस्करा कर
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