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________________ चरित्र १५० वियोग में पागल होगया है और राजकाज छोड़कर इधर उधर मारा मारा फिर रहा है उसके साथमें नीच जातिके लड़के हैं मुझसे राजाकी ऐसी दुर्दशा देखी सुनी नहीं गई इसीसे मैं दुःखित होकर रोने लगी और कोई कारण नहीं है ।३०१-३०३। रानी चन्द्रप्रभा ऐसे वाक्योंको सुनकर, जिन्हें उसने पहले कभी नहीं सुने थे, कुपित हुई और बोली, माता ! तूने अच्छा नहीं किया, इसप्रकारके असुहावने वाक्य जिनको सुनकर मुझे दुःख उपजे, तुझे कहना उचित न था। भूले हुए दुःखकी याद दिलाकर तू मुझे विशेष दुःखी क्यों करती है ? ॥३०४-३०५। तू नीच कुलको दासी है, इसमें सन्देह नहीं, ऐसा नहीं होता तो तू भूले हुए दुःखको याद दिलाकर क्यों उभाड़ती और मुझे दुःखित करती ? ३०६। तूने मुझे दूध पिलाया है, इसलिये तू मेरी माताके समान है । यदि ऐसा न होता तो मैं तेरा बहुत बड़ा अनिष्ट करती। ७ । जिसका मुख पूर्णमासीके चन्द्रमाके समान है, जिसके नेत्र चंचल हैं, जिसकी प्राकृति सुन्दर है, जिसकी दीर्घ और सुपुष्ट भुजा हैं, जिसने अपने रूपसे कामदेव को भी जीता है और अनेक राजा जिसकी आज्ञा सिरपर धारण करते हैं, ऐसे मेरे पतिकी तू मेरे सामने निन्दा करती है।८-९। चन्द्रप्रभाकी धायने समझा कि, रानीने मेरी बात झूठ समझ ली है। ऐसा समझने पर वह आगे भी मुझपर सन्ताप करेगी, इसलिये इसे राजा हेमरथको साक्षात् दिखा देना चाहिये, जिससे इसके चित्तका सन्देह दूर होजाय ।१०-११। ऐसा विचारकर उस चतुर धायने चन्द्रप्रभा से कहा, पुत्री ! देख अभी मैं तुझे तेरे सुन्दर पतिको दिखाती हूँ। तब चन्द्रप्रभा बोली, अच्छा बता कहां हैं ? उसी समय जब पागल राजा, राजमहल के झरोखेके नीचे आया, तब धायने उस बुरे वेष धारण किये हुए राजाको दिखाया और कहा पुत्री! तूने देखा, गतिसे, लक्षणसे, चेष्टासे यह राजा हेमरथ ही मालूम पड़ता है ? रानीने उसके लक्षणोंसे और चेष्टासे जान लिया कि यह मेरा प्यारा पति ही है जो पद पदपर हाय प्रिये ! हाय प्रिये ! करता हुआ चिल्ला रहा है ।१२-१५। अपने भर्तारकी Jain Educa intemational For Private & Personal use only www.jabrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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