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________________ १४६ भ्रमण करने लगा । दुष्ट काम पिशाच के वशीभूत होकर उसने अपने कुटुम्ब, बन्धुगण, राजकाजको प्रथम्भ छोड़ दिया और लड़कोंकी टोलीमें वह अकेला डावाँडोल फिरने लगा । ८५-९०। नगरकी गलियों में तथा वनमें हाय प्रिये ! हाय प्रिये ! करता हुआ चक्कर लगाने लगा मृढ़बुद्धिको वस्त्र वा वेषकी रंचमात्र सुधबुध न रही । योंही इतस्ततः भटकने लगा | ११ | बिना वस्त्रके धूलिसे जिसका शरीर मलीन रहा है, जिसके बाल रूखे हो रहे हैं। जिसके मुखकी कांति जाती रही है जिसने कंधे पर फटे वस्त्र धारण कर रक्खे हैं, ऐसी दशा को प्राप्त हो राजा हेमरथ अनेक नगरों में फिरते २ मोहके वशीभूत होकर दैवयोग से अयोध्या में पहुँचा । ६२-६३। वहां रास्तेमें जाती हुई स्त्रियों को देखकर उनके पीछे दौड़ने लगता और कहने लगता, हे चन्द्रप्रभा ! जरा ठहर जरा ठहर मेरी बात तो सुन ॥६४॥ ऐसे वचन सुनकर उसे उन्मत्त पागल जानकर स्त्रियें कंकर फेंककर पत्थर मारने लगीं और कई स्त्रियें डर कर दूर भागने लगीं । जिधर जिसके पास जावे वे सब इसे दूर ही से दुतकार देते थे । इस प्रकार गली गली में बाजार में पागल हेमरथ डावाँडोल फिरने लगा । ९५-९६ । एक दिन जब रानी चन्द्रप्रभा झरोखे में बैठी थी, तब उसकी धायने राजा हेमरथका राजमहल की तरफ दौड़ते और हाय २ जोर जोर से चिल्लाते हुए देखा और पहचान लिया कि ये तो राजा हेमरथ है । उसकी निपट बुरी दशा देखकर वह अत्यन्त दुःखित होकर रोने लगी ।६७-६८ | यह देख कर चन्द्रप्रभा बोली, हे माता मैं तेरे रुदनको देखकर बड़ी व्याकुल हो रही हूँ । इस कारण तू मुझे शीघ्र बता किस दुष्टने तेरा अपमान किया है ? बिना कारण तू क्यों रोती है ? ।९६ -३०० । तब धाय ने उत्तर दिया, पुत्रिके ! कुछ भी कारण नहीं है । यों ही मेरे आखों में आंसू आ गये हैं । जब रानीने बहुत आग्रह किया और कारण पूछा, तब धायने गद्गद् वाणीसे कहा, पुत्री ! तू तो सुखमें मग्न होकर ने भर्तारको भूल गई । परन्तु तेरे प्राणप्यारे राजा हेमरथकी यह दशा हुई है कि वह तेरे Jain Education international For Private & Personal Use Only 3c चरित्र www.jaibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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