SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को न जाना निदान ती मोहित होकर मधुराजाने चन्द्रप्रभाको अपनी पटरानी बनाली ७४-७६ । राजा हेमरथ की क्या दशा हुई सो सुनोः - जिन मन्त्री वा नौकरों को, राजा हेमरथ १४८वटपुरको जाते समय रानी चन्द्रप्रभाके साथ अयोध्या में छोड़ गया था, वे यह देखकर कि मधुने चन्द्रप्रभा को अपनी रानी बना लिया है, निराश होकर वटपुरको चले आये | ७७| और राजा हेमरथको सब वृत्तांत कह सुनाया जब राजाने अपनी प्राणप्यारी का हरण सुना, तब उसका हृदय विदीर्ण होगया - मूर्च्छा खाकर पृथ्वीपर गिर पड़ा और कुछ देरतक अचेत पड़ा रहा । तब मन्त्री आदिकों ने शीतोपचार द्वारा राजा को सचेत किया ।७८-७९ । ज्यों ही राजा सचेत हुआ, उसने क्रोध से अपने नेत्रलाल कर लिये और मन्त्रियोंको हुक्म दिया, सेना तैयार करो । ८० । मैं अभी अयोध्याको जाता हूँ और राजा मधुको जीतकर अपनी प्राणप्यारी चन्द्रप्रभाको ले आता हूँ । ८१ । तब मंत्रियोंने उत्तर दिया महाराज ! आपका जाना ठीक नहीं है कारण मधु बड़ा बलवान है, वह अपने से नहीं जीता जा सकता है |२| मन्त्रियोंकी बात सुनकर राजा हेमरथ मनमें यह विचार करके कि सचमुच मधु का जीतना अत्यन्त कठिन है । उद्यम रहित हो गया, ठंडी सांस खींचने लगा और काम पिशाचके वशीभूत हो रानी चन्द्रप्रभाको बारम्बार याद कर खेद खिन्न हो सेजपर जा पड़ा और विह्वल चित्त हो गया । ८३-८४। शून्य चित्त होकर कभी हँसने लगा कभी महल में जाने लगा, कभी सभामें आकर गाने व रोने लगा, कभी जीमें कुछ विचार कर घर आता और खिड़कीमेंसे इधर उधर झांकता, कभी झरोखेपर चढ़कर देखता, परन्तु उसे सब शून्य ही दीखता था । रानी चन्द्रप्रभा के बिना घर सूना देख कर वह गला फाड़ २ कर रोने लग जाता । हाय हाय ! प्रिये ! दयिते ! प्राणवल्लभे ! मेरे ही प्रमाद से उस दुष्टात्माने तुझे हरी है। अब मैं क्या करू ? कहाँ जाऊँ ? किससे पूछूं ? और क्या कहूँ ? ऐसे तरह २ के विकल्पों से उसकी बुद्धि मारी गई और विचारहीन पागल होकर वह अपनी पुरी में वा Jain Education International For Private & Personal Use Only पद्यम्न चरित्र www.jainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy