________________
प्रद्युम्न
१४७
है । इस बात की तो तुझे बड़ी खुशी मनानी चाहिये । राजा मधुके ऐसे वचन सुनते ही रानी चन्द्रप्रभाने उत्तर दिया । ६५-६६ । हे महाराज ! आप उत्तम कुलके उपजे, धर्मात्मा न्यायवन्त और जगत् प्रसिद्ध होकर ऐसा महानिंद्य कार्य क्यों करना चाहते हो, जब बाड़ ही खेतको खाने लगी, तब कौन रक्षा कर सकता है | ६७ | दूसरेकी स्त्रीका सेवन जगत् निद्य है । ऐसे कार्यको ज्ञानवान वा न्यायवान पुरुष कदापि स्वीकार नहीं करते। और जो कुलीन सती स्त्रियें हैं, वे परपुरुषको, (चाहे वह कामदेव के तुल्य रूपवान क्यों न हो) कभी अङ्गीकार नहीं करेंगी और दुराचार कर अपने भर्तारको कभी नहीं ठगेंगी | ६८ | ऐसे नाना प्रकार के वचनोंसे रानी चन्द्रप्रभाने राजा मधुको समझाया परन्तु कामarea aur aोकर कामांध राजा जबरदस्ती रानी चन्द्रप्रभासे रमण करने लगा । ६६ । जब राजाने अपने मनोहर वचनोंसे हँसी मस्करीसे, चुम्बन, विरुत, रत कुटिलदृष्टि आदि कामचेष्टाओं से रानी चन्द्रप्रभाको कामासक्त कर दिया, तब वह भी अपने भर्तार हेमरथकी याद भूल गई और आनन्द में मग्न होकर उसने अङ्गों के संकोच, किंकिणीके शब्द, मनोहर हाव भाव विलास, विभ्रम, गीत, नृत्य, कथादिसे राजा मधुके चित्तको रंजायमान कर दिया तथा सुरत लीलाके गाथा दोधक यादि कहकर भांति २ के विनोदसे राजाने भी उस भामिनीको तल्लीन कर डाली । ७०-७२ | और मोहके वशीभूत होकर उसने चन्द्रप्रभाको अपने महलमें रख लिया, तथा इस इच्छित पदार्थको प्राप्तकर अपने राज्यको सार्थक गिनने लगा । ७३ । उसने चन्दन अगरु यादि शीतल पदार्थों से जलकी वापिका सुगंधित कराई
र उसमें रानी चन्द्रप्रभा के साथ मनोवांछित मनोहर क्रीड़ा की और इसी प्रकार इनका अनेक वनों उपवनों में, नदियोंके निकट पर्वतों की तलहटीमें, विहार करते, मौज उड़ाते और सुन्दर फूलों में झूलते हुए बहुतसा समय व्यतीत होगया । परन्तु सुखसागरमें मग्न होने से उन्होंने उस बीतते हुए काल
Jain Education International
...
For Private & Personal Use Only
चरित्र
www.jainelibrary.org