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पनम्न
चरित्र
सुनायो । दूती विनयपूर्वक बोली ।५९। राजा मधु महलमें विराजे थे, कि अकस्मात् राजा हेमरथके दूतने पाकर सविनय निवेदन किया कि, राजा हेमरथने मेरे मुखसे कहलाया है कि, मेरी रानी चन्द्रप्रभाको बने जिस प्रकार मेरे पिछलग वस्त्राभरण से सुसज्जित करके रवाना कर दो। यदि मुझ पर आपका सच्चा स्नेह है तो विलम्ब न करो।५२-५३। सो दूतके वचन सुनकर राजा मधुने अापको आज ही विदा कर देना उचित समझा है और मेरे साथ आपको वहां बुलाया है, जो गहने आपके लिये बनवाये हैं, सो अभी तैयार नहीं हैं, इसलिये राजा मधु अपनी स्त्रियोंके गहने ही आपकी भेंट में देंगे और आपको ५४। अपने प्रीतमके पास सबेरे ही भेज देंगे। इसलिये मेरे साथ राजा मधुके महलमें शीघ्र चलो।५५। दूतीके वचन सुनकर रानी चन्द्रप्रभा चिंता करने लगी कि अब मैं क्या करू ? यदि मैं राजा मधुके पास जाती हूँ तो वह अपना मनोरथ सिद्ध करेगा अर्थात् मुझे अपनी स्त्री बना डालेगा। और यदि नहीं जाती हूँ तो राजा क्रोध करेगा। इस कारण चलना ही ठीक है। लाचार ठण्डी सांस खींचती, अांसू टपकाती हुई अपने वृद्ध नौकरों तथा उस दूतीके संग वह मृगाक्षी राजाके महलको रवाना हुई ।५६-५८।।
उस समय राजा मधु महलके सातवें खंडमें तिष्ठे थे इस कारण दूतीने रानीके नौकर चाकरों को तो नीचे ही छोड़ दिया और वह चन्द्रप्रभाको लेकर महलके ऊपर गई और राजासे मिलाकर अपने घर लौट आई ।५६-६०। रानी राजाको अकेला बैठा देखकर बड़ी चिन्तातुर हुई । उसका शरीर थर २ कांपने लगा। लज्जाके कारण उसने राजासे कुछ न कहा । (मौन धारणकर खड़ी रही) तब राजाने स्वयं उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपनी सेज पर बिठा लिया । और मनोहर परिहास युक्त चापलूसी के वचन कहना प्रारम्भ किया। हे सुन्दरी ! ठण्डी हो ! प्रसन्न हो ! इस समय तू हर्षके स्थानमें सोच क्यों करती है ? ।६१-६४। जो तेरा हेमरथ राजा है, वह मेरा ही आज्ञाकारी
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