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न्ध होकर उससे कहा- मेरी प्राणप्यारी कमलनयनी चन्द्रप्रभाको ले आओ, देर न करो । तब मन्त्रीने उत्तर दिया, महाराज ! कुछ देर और ठहरिये, जरा रात्रिका समय तो होने दीजिये । तब राजाके चित्तमें कुछ सन्तोष हुआ और ज्यों त्यों उसने दिवसकी घड़ियां पूरी कीं । ३६-३८ । अथानन्तर सूर्य राजा मधुको दुःखी देखकर उसपर कृपा करके मानों वह धीरे २ अस्ताचलकी ओर चला | ३६ | और ahar चकवीका वियोग करता हुआ कमलोंको संकोचित करता हुआ, कामी जनों को सतोषित करता हुआ तथा पश्चिम दिशाको रक्त करता हुआ, सूर्य अस्त हो गया । उसके अस्त होने पर संध्याने आकाशरूपी आंगन में पांच रंग धारण कर लिये ।४०४१ | और जो अन्धकार सूर्य के प्रताप के कारण डरकर पहाड़की गुफा में छुप गया था, सो मौका पाकर राज्य जमानेके लिये निःशंक बाहर निकला और दशों दिशाओं में फैल गया | २४२ | जिससे ऊंचा, नीचा, चलायमान, स्थिर, सम, विषम तथा सब प्रकार के वर्ण अन्धकार के फैलाव से समान हो गये एकसे दिखने लगे जैसे निंदित राजाके धागे बुरे भले ऊंचे नीचे सब समान हो जाते हैं ।४३-४४। रात्रि समय आकाश में तारागण दीखने लगे, सो ऐसे शोभायमान हुए मानों नीलमणिकी भूमिपर मालती के फूल बिखरे हुए हैं । ४५ । और चन्द्रमाका उदय हुआ जिसने केतकीपुष्प के समान श्वेतता युक्त अपनी चांदनी चहुँ और फैलाकर पृथ्वीको सफेद कर दिया । चन्द्र महाराजने जगतको अन्धकार से पीड़ित देखकर प्रजाक हितार्थ अपने किरणरूपी बा चहुँ र छोड़े । ४६-४७। इसप्रकार जब रात्रि के पहले पहर में चन्द्रमाकी चांदनी खिल रही थी, तब मन्त्रीकी ज्ञासे राजाने एक दूतीको बुलाकर अपनी प्रिया के पास भेजी | ४ |
जब चतुर दूती राजा हेमरथकी रानी चन्द्रप्रभाके पास पहुँची, तब उसने पास जाकर विनय सहित प्रणाम किया और कहा, हे देवी! सावधान चित्त होकर राजा मधुने जो सुन्दर वचन मेरे द्वारा कहला भेजे हैं, सो सुनो । ४६-५०। तब रानी चन्द्रप्रभा वोली- कि जो कुछ तेरे स्वामीने कहा हो,
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