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________________ प्रद्युम्न जैसी आपकी इच्छा, और नमस्कार करके वह अपनी प्रिया चन्द्रप्रभाके पास आकर बोला हे देवी ! मेरी बात सुन ! राजा मधुने मुझे तो विदा कर दिया है इस कारण मैं वटपुर को जाता हूँ और तुझे | चरित्र विश्वासपात्र वृद्ध मंत्री नौकर चाकरोंकी निगरानीमें यहीं छोड़ जाता हूँ। सो हे प्रिये ! तू आभूषणादि लेकर जल्दी चली आना। राजा मधु अपनी पहली भक्तिको देखकर अत्यन्त प्रसन्न है। इसलिये उसने तुझे यहाँ छोड़ जानेके लिये कहा है ।२३-२६। सो तू यहीं ठहर, में जाता हूँ। राजाके वचनोंको सुनकर रानी चन्द्रप्रभाने दुःखित हृदय होकर उत्तर दिया ।२७। हे नाथ ! मैं समझ चुकी कि एक तो आप अपने अभाग्यके वशसे मुझे यहां ले आये हैं और दूसरे अकेली छोड़कर घर जाते हैं। इससे अब आप निश्चय समझ लो कि राजा मधुने मुझे अपनी स्त्री बनाकर अपने महलमेंही स्थापित करली है अर्थात् राजा मधु बलात्कार मुझे अपने रणवासमें दाखिल करलेगा और अपनी स्त्री बनालेगा। पीछे आप बहुत पछताओगे, तव राजा हेमरथने कहा हे मूढ़मति तू बड़ी भोली दीख पड़ती है तू जीमेंसे ऐसा सन्देह निकाल डाल, जैसा तू समझ रही है वैसा उनका दुष्ट अभिप्राय नहीं है राजा इस समय मरेपर अत्यन्त प्रसन्न हो रहा है । मैंने इसके जीकी खोटी चेष्टा आजतक नहीं देखी है । इसलिये चिन्ता न करके यहां सुखसे रहना। और मेरे वटपुर पहुँचते ही शीघ्र ही आजाना।२८-३२। रानी चन्द्रप्रभाने फिर कहा हे स्वामी ! आप मधुके मीठे २ बचनोंमें मत फँसो—इसका फल बहुत ही कटुक होगा, उस पीछे आपकी आंखें खुलेगी और हाथ मल मलकर पछताओगे । इसप्रकार रानी चन्द्रप्रभाने बहुत कुछ समझाया परन्तु राजा हेमरथकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई वह रानीके वचनों पर बिल्कुल ध्यान न देकर उसे वहीं छोड़कर अनेक अपशगुन होनेपर भी वटपुर को चला गया। सो ठीक ही है होनहारका कोई प्रतिकार नहीं है ।३३-३५॥ राजा हेमरथके चले जानेपर क्या हुअा सो सुनो। राजा मधुने अपने मंत्रीको बुलाया और मोहा - - - Jain Education interational For Privale & Personal Use Only www. j Gibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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