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और भी नाना प्रकारसे वह उत्तम वन विभूषित किया गया । ५-८ ।
प्रद्यम्न
दे
जब राजा मधुने सुना कि वन सजे धजके तैयार हो गया तब वह अपनी रनवासकी रानियों चरित्र १४३ सहित तथा सामन्तों व उनकी स्त्रियों सहित प्रसन्न चित्तसे वन क्रीड़ाको खाने हुवा । ६ । सो वहां लताओं के रमणीय पत्तोंसे, फूलों के पतनसे, भौंरोंकी झंकारसे, कोयलोंकी मधुरध्वनिसे, मंजरी (मोर) युक्त आमके वृक्षों और मुकुलित कलियोंसे, वह वन राजा को आया जान विविध रहा है, ऐसा जान पड़ने लगा | १०-१२। इसी वनमें राजा मधुने केरार मिश्रित जल पिचकारियों में भरकर अतिशय मनोहर क्रीड़ा की, तो भी उस विरहीको कहीं रंचमात्र सुख न हुआ । १२-१३ । अन्य जो जो राजा थे, वे भी अपनी २ रानियों के साथ अनेक प्रकारकी रंगविरंगी क्रीड़ा करने लगे | १४ | इस प्रकार राजा मधु उस वसन्त श्रेष्ठ समय में सब लोगों के साथ एक मास पर्यन्त खूब क्रीड़ा करता रहा ।१५। पश्चात् महोत्सव के साथ अयोध्या नगरी में आकर वह अपने महल में तिष्ठा | १६ | और समस्त राजाओं को वस्त्र असवारी आभूषणादिकसे संतुष्ट करके स्त्रियों सहित शीघ्रता से विदा करने लगा ।१७। अन्तमें उसने राजा हेमरथसे बुलाकर कहा, मित्र ! अभी मेरे पास तुम्हारे तथा तुम्हारी रानीके लायक गहने तैयार नहीं हैं, इसलिये तुम अपने नगरको शीघ्र चले जाओ । कारण, बिना स्वामी के देशको सूना देखकर वैरो अपना अधिकार कर लेते हैं । १८ - १६ | हे मित्र ! जब मैं तुम्हारे वटपुर में आया था, तब तुमने मुझे जी जानसे सन्तोषित वा सम्मानित किया था ! इसलिये मेरी भी ऐसी इच्छा है, मैं तुम्हारे व तुम्हारी रानी के योग्य आभूषणादि भेंट में प्रदान करू | २०| इसलिये तुम बेखटके अपनी चन्द्रप्रभा रानीको यहीं छोड़ जावो में उत्तम ग्राभूषण देकर उसे तुम्हारे पीछे शीघ्र ही विदा कर दूंगा |२१| आपके तथा आपकी प्रिया के योग्य अलङ्कार तैयार नहीं हैं सुनार घढ़ रहे हैं सो बहुत जल्दी बने जाते हैं ।२२। भोले राजा हेमरथने उस कामीके वचन सच्चे जानकर कहा बहुत अच्छा !
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