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प्रद्यम्न
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समय ही मैं राजा की अनीति दृष्टि जान गई हूँ ) मैं वहां जाऊँगी तो वह हरण किये बिना नहीं छोड़ेगा ।६६। तब राजा हेमरथने उत्तर दिया, हे मूढमते ! तू क्या निन्दित वाक्य कहती है तेरे समान सुन्दर राजा मधुके यहां हजारों दासियें हैं । ६७। तब दूरदर्शी रानीने प्रत्युत्तर दिया, स्वामिन् ! मैंने जो उचित समझा सो कह दिया । जो भवितव्य में लिखा है वह यागे तुम्हें मालूम हो जायगा, ऐसा कहकर चुप होई | १८ | तब राजा बोला हे मृगेक्षणे ! सव अच्छा ही होगा; तू विकल्प न कर मेरे साथ अवश्य चल | ९| इसप्रकार राजा हेमरथ चन्द्रप्रभाको समझा बुझाके और अनेक दासी दास परिवार अपने साथ लेकर बहुत जल्दी वटपुर से अयोध्याको खाने हो गया । चलते समय अनेक अनिष्ट शकुन हुए, तो भी " विनाशकाले विपरीत बुद्धिः" होने के कारणसे राजाने उस ओर कुछ भी ध्यान नहीं दिया | २०० | जब राजा हेमरथ अयोध्या नगरी के पास पहुँचे, तब राजा मधुने बड़े विनय के साथ अपने परिवार सहित उनके सन्मुख जाकर अत्यन्त प्रेमसे हेमरथको गले लगा लिया और बहुत बढ़िया सजे धजे स्थान में उसे रानी चन्द्रप्रभा सहित ठहरा दिया । २०१ २०२ । और पट्रस के व्यंजनोंसे वा आदर सत्कारसे राजा हेमरथ को अतिशय प्रसन्न किया । उसके अन्य सर्व लोगों का भी अच्छा सम्मान किया गया | ३ |
राजा मधुने यह देखकर कि बहुतसे राजा द्या गये हैं वनको शृङ्गारित कराया । राजाओं को फँसाने के लिये यह सब जाल फैलाया गया सो ठीक ही है, ऐसा कौनसा कार्य है जो मायाके द्वारा सिद्ध नहीं होता ? |४| वह वन फूलों की पराग रज से सुगंधित और मदोन्मत्त कोयल की कूक तथा भौरों की झंकारसे सुशोभित हो गया । सिंदूरादि पदार्थों से रचे हुए बनावटी पर्वतोंसे रमणीक दीखने लगा । सुगंधित रज के बिखरने से उसकी शोभा बढ़ गई । इसके सिवाय हरिचन्दन की कीचड़से, कपूर केशरादि सुगंधित वस्तुओं से भरी हुई सैंकड़ों वापिकायोंसे, सोने चांदी के रंग विरंगे बंधनवारोंसे तथा
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