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________________ इसके पश्चात् एक पत्र प्रमके सुन्दर अक्षरोंसे लिखकर परम विचक्षण दूतके हाथ राजा हेमरथके पास भेजा गया । ८४ । जिसे पढ़कर और राजा मधुके स्वयं हाथका लिखा हुआ जानकर राजा १४१ हेमरथ वहुत प्रसन्न हुआ। वह अपनी चन्द्रप्रभा रानीको बुलाकर बोला, देखो ! देखो ! प्रिये राजाधिराज मधु निश्चय कर मेरी भक्ति से अत्यन्त सन्तुष्ट हैं, इसीलिये उसने मुझपर कृपादृष्टि कर दूतके हाथ यह प्रेमपत्र भेजा है सो तुम भी इसे अपने हाथ में लेकर वांचो तब रानी चन्द्रप्रभाने उस पत्र को अपने हाथ में लिया और वांचा । ८५-८७ पत्र में इस प्रकार लिखा था: "स्वस्तिश्री वटपुर रमणीक नगर विराजमान सर्वोपमायोग्य राजा हेमरथके प्रति कुशल प्रश्न के पश्चात् (राजाधिराज मधु ) लिखते हैं कि तुम्हारी भक्ति से हम बहुत प्रसन्न हैं । तुम हमारे प्रियमित्र हो, इसमें सन्देह नहीं है । तुम्हारे समान हितैषी मेरे राज्य में दूसरा सामन्त नहीं है । जो मेरा राज्य है, उसे तुम अपना ही समझो। तुम संकोच छोड़ो और हमसे रंचमात्र भी भेदभाव मत रक्खो । ऐसा जानकर और हमपर प्रेमभाव धारणकर तुम्हें अपनी प्राणप्रिया के साथ यहां अवश्य आना चाहिये । कारण हमारा इस वसन्त ऋतु में महोत्सवके साथ वनमें जाकर राजपुत्रों के साथ एक मास पर्यन्त क्रीड़ा करने का पका विचार है । तुम्हारे दर्शनोंकी अभिलाषा से यहां अनेक राजा अपनी २ प्राणवल्लभा सहित पधारे हैं । इसलिये बहुत शीघ्र अपनी चन्द्रप्रभा प्रियाको साथमें लेकर आपको यहां थाना चाहिये” इति । ८८- ९४ | पत्र पढ़ने पर चन्द्रप्रभाने विनय के साथ राजा हेमरथसे विनती की कि, हे स्वामिन् मेरी बात ध्यान से सुनो, राजाओं का सेवकों पर अत्यन्त आदरका दिखाना भी ठीक नहीं होता है (यह कोई जाल रचा गया है, राजा गूढ़ नीतिमें गोता मारते हैं, उनका कोई भी कार्य बिना प्रयोजन नहीं होता ) । ६५ । इसलिये हे नाथ आप चाहें तो पधारें परन्तु मुझे साथ न ले चलें, कारण ( आरती उतारते Jain Education international ३६ For Private & Personal Use Only चरित्र www.janbrary.org.
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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