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________________ प्रद्युम्न - - दोनों ही कार्य विरुद्ध हैं, तब मुझे क्या करना चाहिये इसप्रकार बहुन समयतक चिन्तवन करके यह निश्चय किया कि, बने जिस तरह मुझे राजाको इच्छा पूरी करना चाहिये । क्यों कि जब राजाका ही विनाश हो जायगा, तो मेरा सब कार्य बिगड़ जायगा ।७१-७२। कोई न कोई उपाय करके मुझे चन्द्रप्रभाको ले आना ही ठीक है। इसका पूरा २ विचार करके सचिव शिरोमणीने मधु नृपतिसे कहा ।७३। महाराज आप क्यों इतने दुःखित, चिंताक्रान्त और उदासीन हो रहे हो ? सोच फिकर छोड़ो, सचेत और स्वस्थ हो जानो, मेरे वचनोंपर विश्वास रकावो में आपकी मनमोहनी हृदयवासिनी चन्द्रप्रभाको अवश्य मिलाऊंगा।७४। मैंने यह समझा था कि, अपने घर आके राजकार्यमें रत होके आप इस अपयशके कार्यको भूल जावोगे, परन्तु हेमरथकी प्राणवल्लभाको आप अभीतक नहीं भूले और मुझे दिखता है कि उसके बिना आपके प्रा । पर बड़ा भारी विघ्न उपस्थित होगा ।७५-७६। इससे अब मैंने निश्चय कर लिया है कि, महाराजकी इच्छा पूरी करनी ही होगी, जो कुछ दैवयोगसे यश अपयश होगा, सह लिया जावेगा।७७। परन्तु प्रभो ! अब आपको धीरज धारणकर सुखसे तिष्ठना उचित है, क्योंकि जो कार्य स्वस्थतासे होता है वहीं कुछ शोभनीक दीखता है ।७८। मन्त्रीके मनोहर वचन सुनते ही राजाके चित्तमें कुछ शान्ति हुई उमने चन्द्रप्रभाके विरहसे उत्पन्न हुए दुःखको दवा लिया ७९। मन्त्रीने भी राजाके कार्यको सिद्ध करनेका दृढ़ संकल्प करके मारी पृथ्वीमें अपने दूत भेजे और उनके द्वारा कहला भेजा कि-जो २ राजा मधुराजाधिराजके शासनको पालन करने वाले हैं उन्हें अपनी रानियों सहित शीघ्र पाना चाहिये कारण राजा मधु इस वसन्त ऋतुमें सस्त्रीक राजाओं और अपनी रानियों सहित उपवन में जाकर क्रीड़ा करेंगे।८०-८२। उम नपचन्द्र अर्थात् मधुराजाके आमन्त्रणको पाकर और उनकी आज्ञाको सिरपर धारण करके सम्पूर्ण राजागण अपनी २ प्राणप्यारियों सहित हर्षित हृदयसे अयोध्या नगरीमें आ पहुँचे ।।३।। Jain Educah interational For Privale & Personal Use Only www.janglibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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