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________________ - इस चारित्रको सुना हो, समझ लो कि, वह भव्य है) अतएव हे मतिमान ! सावधान होकर और स्थिर चित्त करके श्रीकृष्णके पुत्र प्रद्युम्नका चरित्र सुनो-श्रीवर्द्ध मानस्वामीकी दिव्यध्वनिसे ऐसे वचन श्रवण- चरित्र करके बारहसभाके समस्त प्राणी स्थिरचित्र और दृढासन होकर बैठ गये। क्योंकि “सत्पुरुष उत्तम मनुष्यके चरित्र सुननेकी उत्कण्ठा रखते हैं। __ इसप्रकार जब श्रोणिकराजाने उस निर्मल अलौकिक और सर्वोत्तम चरित्रके सुननेकी अभिलाषा प्रकट की तब श्रीवीरनाथ भगवान्ने कृष्ण पुत्रका चरित्र वर्णन करना प्रारम्भ किया। इसके सुननेसे पाणी उत्तम पदको प्राप्त होते हैं, ऐसा जानकर भव्यजीवोंको जिनधर्ममें रुचिपूर्वक अपनी बुद्धि लगाकर इस चरित्रको सुनना चाहिये ॥६६॥ इति श्रीसोमकीर्तिआचार्यविरचित प्रद्युम्नचरित्र संस्कृतग्रन्थके नवीन हिन्दी भाषानुवादमें राजा श्रेणिकके प्रश्नके कथनका प्रथम सर्ग समाप्त हुआ। ® अथ द्वितीय सर्ग स्वयंभरमणसमुद्रपर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्रोंके बीचमें जम्बूवृत्तोंसे चिह्नित और पृथ्वीतलपर सुप्रसिद्ध जम्बूद्वीप नामका एक द्वीप है । उसकी दक्षिण दिशामें भरतक्षेत्र शोभायमान है। उसका हम विशेष क्या वर्णन करें। तीर्थंकरोंके पंचकल्याणक स्थानोंसे वह एक तीर्थस्वरूप है, और पापकानाश करनेवाला है वहाँ जिनकल्याणककी रचना करनेवाले देवोंका आगमन हुआ करता है।।१-३॥ उस भरतक्षेत्रमें एक जगत विख्यात सौराष्ट नामका देश है जो पुण्यात्माओंके लिये स्वर्गके समान है ॥४॥ वहाँकी वाटिकाओंमें लगे हुए सरस गन्ने (इक्षु) पवन द्वारा चहुँ ओरसे कम्पायमान होनेपर भी भूमिपर गिरजानेसे नीच पुरुषोंके द्वारा बांधे जाँयगे, ऐसे भयसे पृथ्वी पर नहीं गिरते॥५॥ सरोवरोंमें कमल खिले हुए हैं और राजहंस शब्द कर रहे हैं ॥ ६॥ नदियें सदाकाल जलसे भरपूर रहती हैं और उनके दोनों किनारे पुष्पोंके समूह से सुगंधित रहते हैं ॥ ७॥ वहांकी बावड़ी अथाह Jain Edigon international For Privale & Personal Use Only www.anelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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