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प्रचम्न
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जलसे भरी हुई हैं, और कोक (चक्रवाक) के शब्दोंसे मानों प्रवासियों का स्वागत ही कर रही हैं ॥ ८ ॥ जगह २ मनोहर जलपानके स्थान ( प्याऊ ) बने हुए हैं और पैंड पैंड पर दानशाला खुली हुई हैं। सुन्दर ग्राम इतने निकट २ हैं कि- मुर्गा एक ग्राम से उड़कर दूसरे ग्राममें जा सकता है ॥६॥ अनेक बगीचे लगे हुए हैं जो (नंदनवन के समान ) बड़े सुन्दर मालूम होते हैं, मानों पुण्यात्मा जीवों के लिये ब्रह्माने मध्यलोक में भी स्वर्गकी रचना की है || १०|| पद पदपर धान्यके खेत पककर पीले हो रहे हैं । खेतों में भार के कारण झुके हुए धान्य के वृक्ष ऐसे शोभित होते हैं, मानों पानी पीनेके लिये नीचे मस्तक कर रहे हैं ॥११॥ जहां तहां धान्यके ढेरके ढेर लगे हुए हैं, इसलिये वहां कभी दुर्भिक्ष (काल) पड़ने की बात तक सुनाई नहीं पड़ती || १२ || वहां की बाहिरी जमीन हरित वा सरस घाससे हरी हो रही है।
चारों र (श्वेत) गायोंके चरने से मानों सफेद कर दी गई हो ऐसी दिखाई देती है ॥ १३ ॥ वहां बन २ में नाग बेल सुपारीके वृक्षोंसे लिपटी हुई है इस कारण ताम्बूल (पान) के लिये वहां के मनुष्य केवल चूना (चूर्ण) ही लेकर जाते हैं ॥ १४ ॥ वहां केलों तथा ताड़फलोंसे लदे हुए कदली तथा ताड़ आदिके वृक्ष और द्राक्ष (अंगूर) वृक्षोंके मंडप जगह २ शोभा दे रहे हैं जिससे वहां के यात्री लोग बिना कलेवाके ही बाहर निकलते हैं ||१५|| इस तरहके सौराष्ट्र देशमें स्वर्गपुरीसे सुन्दर एक द्वारिका नामकी प्रसिद्ध नगरी है। जिसमें वापिका कूप सरोवर, बन, वाटिका आदि शोभायमान हैं मानों अमरावती (इन्द्रपुरी) ही लोगोंके पुण्य से यहां आ गई है ।॥ १६-१७ ॥ उसमें सात सात, आठ आठ खण्डके महल हैं जिनकी सुवर्ण की भीतें रत्नों की मालाओं से शोभित हो रही हैं ॥ १८ ॥ वे महल चूनेसे पुते हुए सफेद हो रहे हैं और उनके झरोखों में बैठी हुई स्त्रियों के मुखको देखनेसे मनुष्योंको शुक्ल पक्षकी आशंका होती है ॥ १६ ॥ उस नगरीमें स्थान २ पर प्याऊ खुली हुई हैं और डग डग पर जिन मंदिर बने हुए हैं जिनमें भव्यजीव उत्सव कर रहे हैं | २०|| नगरीके चारों ओर ऊंचे कोट और समुद्रकी
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चरित्र
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