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________________ पाम्न श्राप क्षमा करो।४२॥ राजा सेनापतिके वचन सुनकर चुप हो रहा उसका अन्तरंग चिन्ता ज्वालासे दग्ध हुआ। बाहर बन्दियोंकी जय ! जय ! ध्वनि होने लगी। इसप्रकार राजाने महान उत्सव सहित राजमार्गसे अयोध्यानगरीमें प्रवेश कर अपने महलमें प्रवेश किया ।४३॥ राजाको आया देखकर नगरवासिनी तथा महलोंकी सुहागन स्त्रियोंने गीत नृत्यादि सैकड़ों प्रकारके उत्मव किये। परन्तु उनसे शून्यहृदय राजाका मन रंजायमान न हुा ।४४-४५। आसन भूषण शयन असन पान सुगन्धी पुष्पोंकी माला तथा अनेक प्रकारके अतर फुलेलादि और नवयौवन शालिनी सर्व शुभलक्षण धारिणी हाव भाव विलास विभ्रम मण्डित उन्नत कुचवाली, विनयसहित मस्तक झुकाई हुई स्त्रियांये सब वस्तुएँ राजा मधुको चन्द्रप्रभा मोहिनी के वियोगमें हलाहल-विषके समान दीख पड़ती थीं ।४६-४८। इस प्रकार राजा तो अपने महलमें तिष्ठा और मन्त्रीगण अपने २ घरमें चुपचाप बैठ गये । राजाके पास जाएँगे।तो वह उसी चन्द्रप्रभाके गीत गायेगा और हमें उलहने देगा, ऐमा जानके उसके पास न जाना ही उन्होंने ठीक समझा ४६। चिन्ताके मारे राजा मधका शरीर दुर्बल हो गया और उसे रोगोंमे पीड़ा होने लगी। काम ज्वरमे तप्तायमान होने के कारण उसे कहीं क्षणमात्र भी साता न हुई ।५०॥ अथानन्तर सर्व ऋतुओं में श्रेष्ठ वमन्त ऋतुका आगमन हुआ। राजा मधुको चन्द्रप्रभाके वियोगमें यह ऋतु घावपर नमक छिड़कने के समान मालूम हुई ।५१॥ वनमें माकन्द जातिकं (ग्राम) वृक्षोंमें मन्जरी प्रा गई और कदम्बके झाड़ोंमें फूलोंके गुच्छेके गुच्छे लटकने लगे।५२। इसी प्रकार अशोक बकुल आदि नानावृक्ष अपने समयानुकूल भलीभांति फूल गये ।५३। सरोवरों में कमल खिले हुए हैं, और उनपर भ्रमर समूह गुजायमान हो रहे हैं। वे त्रिलोकविजयी कामदेवके छत्रके समान शोभित होते हैं ।५.४। कोयलका ककना वही बाजोंका शब्द है, भ्रमरोंकी झंकार वही गीतोंकी सुरीली Jain Educat interational For Private & Personal Use Only www.jailibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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