________________
बात
हरनेवाली चन्द्रप्रभा सुन्दरी विद्यमान है ।१२७-१२६। तब मन्त्री चित्तमें विचारने लगा, क्या किया जावे राजा अभीतक चन्द्रप्रभा को नहीं भूला है। अब मैं क्या करूं? वास्तवमें यह परस्त्रीपर अत्यन्त मोहित हो रहा है । ३० । तब मन्त्रीने उत्तर दिया, महाराज जो हुक्म, सेनासहित वटपुरको ही चलते हैं, आप चित्तमें चिन्ता न करें।३१। तब मंत्रीने सेनापतिको अलग बुलाकर कहा कि रात्रि को तुम वटपुरको दूर एक बाजूही छोड़कर सीधे सेनाको कौशलपुरी (अयोध्या) के तरफ ले जाना ।३२। सेनापतिने वेसा ही किया। अर्थात् रात्रिके समय राजा मधुसहित समस्त सेना को वटपुर के . रास्तेको छोड़कर कौशलनगरी की तरफ ले गया।३३।
प्रातःकाल होते ही अयोध्या नगरी के पास पहुँचे । जब नगर निवासियोंको मधुराजाके शुभागमन होनेके समाचार पहुँचे, तब वे तोरण-ध्वजादिकसे नगरको सुशोभित करने लगे।३४। सब दुकाने सजाई गई और मार्गमें पुष्प फेलाये गये । अयोध्याके अनेक सेठ साहूकार मंगलीक सामग्री भेंटमें लेकर राजाके सन्मुख आये और नयरूपी लक्ष्मीसे युक्त मधुराजासे मिले ।३५-३६। जब राजाने उन्हें अपने नगर निवासी देखकर विचारा तो मालूम हुआ कि यह तो अयोध्यापुरी है, इससे राजाके चित्त में अत्यन्त दुःख चिंता और कोप उत्पन्न हुा ।३७। उन्मत्त होकर वह अपने मन्त्रीसे बोला, हे मूढ़ ! तूने मेरे साथ यह क्या छलवाली बात दुश्चरित्र किया।३८। जो खोटा अभिप्राय कर वटपुर को छोड़कर मुझे यहां ले आया। यह तूने बड़ा प्रपंच रचा । तू बड़ा असत्यवादी जान पड़ता है।३६ । यह सुनकर प्रधान मन्त्रीने सेनापतिको बुलाकर पूछा कि--तुम वटपुरके रास्तेको छोड़कर इस रास्तेसे अपनी सेना बिना आज्ञाके कैसे ले आये ? ४०। तब सेनापति कांपने लगा और हाथ जोड़कर विनयसे बोला स्वामिन् ! क्षमा करो में रात्रिके अन्धकारके कारणसे मार्ग भूल गया ।४१॥ में अजानपनेसे अयोध्याके रास्तेसे ले पाया मैंने यह जान बूझकर अपराध नहीं किया है। इसलिये मेरी भूलको
For Private & Personal Use Only
www.
jetbrary.org
Jain Education international