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________________ लौट जावेंगे । और संग्राम करनेकी जो तैयारी की गई है, निष्फल हो जायगी। यदि ये सुभट मांडलिक राजादिक विकल चित्त होने पर तुम्हारे साथ संग्राममें गये, तो कुछ प्रयोजन सिद्ध न होगा इसलिये चरित्र आपको यह बात अपने मनमें गुप्त ही रखना उचित है।८९-९२। पहले सामन्त राजाओंकी सेनाकी सहायतासे वैरीको परास्त करो, पश्चात् मैं आपका मनोवांछित कार्य सिद्ध करूँगा, इसमें सन्देह नहीं है । शत्र के जीतनेपर जो आप कहोगे वह बन सकेगा। इसप्रकार मन्त्रीके मनोहर वचनोंको सुनकर राजा मधुने अपने चित्तमें धैर्य धारण किया कि, मेरा मनोरथ अवश्य सिद्ध होगा। राजाने मन्त्रीसे कहा, तुम्हें मेरे कार्यको सर्वथा सफल करना होगा, मेरे चित्तको विश्वास उत्पन्न करनेके लिये तुम मुझे वचन दो, जिससे मेरे चित्तमें चैन उपजे तब मन्त्री ने राजाकी इच्छानुसार इस बातका वचन दिया ।६३-६६। मन्त्रीके मनोहर वचनोंको सुनकर राजा मधु स्वस्थचित्त होकर वैरीको परास्त करनेकी उत्कंठा से सर्व सेनासहित रवाने होनेको तैयार होगया ।।७। मन्त्रीके अाग्रहसे वह राजा हेमरथ भी अपनी सम्पूर्ण सेनाके साथ वटपुर से चल पड़ा।६। सो मार्गमें सेनाकी सघनता और वेगसे पर्वत के शिखरों को गिराते, नदियोंको सुखाते, और वृनोंका नाश करते हुए रात्रिके समय राजा मधुने उम महती सेना मे राजा भीमके नगरको आ घेरा ।९६-१००। बाजोंकी आवाज सुनकर उस नगरमें कलकलाहट मचने लगा-वहांकी प्रजाका शरीर भयसे थरथराने लगा और सबको बड़ी भारी चिंता उत्पन्न होगई।१०१॥ राजा भीमने यह कोलाहल सुनकर मंत्रीसे पूछा, नगर निवासी इतना हल्ला क्यों मचा रहे हैं।१०२॥ मन्त्री बोला,-महाराज ! मधुराजा वड़ी सेना लेकर चढ़ आया है ।१०३। इसपर राजा भीमने कहा, तुम विना निश्चय किये क्या बोलते हो ? क्या इस जगतमें कोई भी ऐसा बलवान है, जो मेरा साम्हना कर सके ? ॥१०४। क्या किमीने कभी देखा वा सुना है कि, सिंहके ऊपर मृगसमूह कूद पड़ा है, अथवा Jain Education International For Privale & Personal Use Only www.jaintibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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