SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी चिंत्ता आप मत करो कारण मैं आपके शठ शत्रुको देखते २ क्षणमात्र में जीत लूँगा ।७७। यदि याप चित्त प्रसन्न न रखोगे, तो अपनी सब सेना मन में यह समझेगी कि, राजा मधुका चित्त शत्रुसे भयभीत होकर उदास हो रहा है । ७ मन्त्रीके ऐसे वचनों को सुनकर राजा मधु बोला, मुझे शत्रुका किंचितमात्र भी दुःख नहीं है । ७९ ॥ तव मंत्रीने फिर पूछा, महाराज ! तो फिर कौनसा कारण है, जिससे आप इतने दुःखित और सचिन्त हो रहे हैं । ८० । तब मधुने पास बुलाकर कहा, हे मंत्री शिरोमणि ! मैं अपने दुःखका कारण तुम्हें कहता हूँ वह यह है कि राजा हेमरथकी चन्द्रप्रभा रानीके लिये मेरा जी तड़फ रहा है । -१ | जिस घड़ीसे मैंने उस रूप-यौवनशालिनीको देखा है, मेरा चित्त कामाग्निसे तप्तायमान होरहा है और मुझे पलभर चैन नहीं पड़ती है |२| राजाके वचन सुनकर वह प्रधान मंत्री बोला, हे स्वामिन् आपने अपने चित्त में यह बहुत ही अनुचित विचार किया है । यह कार्य इस लोक और परलोक दोनोंके विरुद्ध और निंदनीक है। इसको सुनते ही जगत में आपका अपयश फैल जायगा । सेनाके सुभटों का चित्त बिगड़ जायगा। नीतिका वाक्य है कि "लोकनिंदितकार्य को मन से भी नहीं विचारना चाहिये” | ८३ ८५। वचनों को सुनकर राजाने कहा, (तुम्हारा कहना तो ठीक है, परन्तु इसके बिना तो में एकक्षण भी नहीं जी सकूंगा । ८६ । यदि मेरे जीवनसे कुछ प्रयोजन हो अर्थात् यदि तुम चाहते हो कि मैं जीता रहूँ तो बने जिसप्रकार से ऐसा उपाय करो, जिससे यह सुन्दरी मुझको प्राप्त हो सके । बिना चन्द्रप्रभाके राज्य, धन, सेना, रत्न, परिवारादिसे मेरा कुछ प्रयोजन नहीं । ८७-८८। जब मंत्री ने देखा कि मधुका चित्त चन्द्रप्रभा में बिलकुल आसक्त हो रहा है तब अपने कर्तव्यको दृढ़ता से हृदय में धारण करके राजासे बारम्वार कहा, कि महाराज ! चित्त समाधान करके मेरी बात सुनो, इस समय जो प्र ेम सम्बन्धी चिन्ता आपके चित्तमें उत्पन्न हुई है, उसे अभी छोड़ दो । कारण दूसरे सामंत राजागण आपको परस्त्री अभिलाषी जानेंगे, तो उनका चित्त बिगड़ जायगा और वे अपने अपने घर Jain Educan International For Private & Personal Use Only मद्यम्न १३३ ३४ चरित्र www.library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy