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________________ तब मधुराजाने उत्तर दिया, सुनो ! क्या सूर्य उदय होतेही रात्रिके अन्धकार को नाश नहीं कर डालता है ? मेरी छोटी अवस्था भी हुई तो क्या हुश्रा, ये तुम्हारी बड़ी बेसमझी है जो इसकारण चरित्र से तुमने आजतक मुझे इस बातकी खबर तक नहीं दी अस्तु !।३४-३५। अब तुम शत्रु पर चढ़ाई । करने के लिये अपनी सर्व सेना तैयार करो, मैं जाते ही किले को तोड़ डालता हूँ।३६। आज्ञा पाते ही मंत्रियोंने संग्राम के लिये इकट्ठे होनेके वास्ते रणभेरी ( संग्रामार्थ तुरही ) बजवाई, जिससे सब सेना एकत्र होगई ।३७। तब राजा मधु सेना सहित रवाना हुअा, मार्गमें हाथियोंके दांतोंसे अनेक वृक्ष टूट २ कर गिर पड़े नानाप्रकारके चक्रोंसे मार्ग में अाने जानेको रास्ता नहीं रहा, घोड़ोंके खुरोंसे पृथ्वी खण्डित हो चली, जिन नदी नालोंका जल सेनाकी दृष्टिमें अगाध दीख पड़ता था, उनमें सेनाके उस पार चले जानेपर कीचड़मात्र दीखने लगा ।३८४०। जिस जिस स्थान की जमीन ऊँची थी, सब सेना के जोर से सम होगई और जो स्थान सम था वह विषम हो गया ।४१॥ रास्तेमें राजा मधु वटपुरके पास पहुँचा। ज्योंही उस शहरके हेमरथनामक राजाको खबर मिली, त्योंही वह निलनेके वास्ते पाया और उसने बड़ी भक्तिके साथ मस्तक नमाके मधुको प्रणाम किया। तब राजा मधुने भी प्रालिंगन करके कुशलादि पूछा । पुनः विनयपूर्वक सिर झुकाके राजा हेमरथ बोला, हे स्वामी ! प्रसन्न होकर आप अपने चरण कमलकी रजमे सेवकके घरको पवित्र करें, हे कृपानिधान ! श्राप एक दिन मेरी राजधानीमें मुकाम करें और दयादृष्टि से मेरी रायविभूति देखकर पश्चात् देशान्तरको गमन करें ।४२-४६। मधुराजाने उसके नगरमें प्रवेश करना स्वीकार किया, विशेष प्रादरको प्राप्तकर कौन मनुष्य सन्तुष्ट नहीं होता ।४७। राजा हेमरथ यह देखकर कि राजा मधुने मेरे सत्कारको स्वीकार किया है, शहर शृङ्गारित करनेके लिये नगरमें गया, स्थान २ में ध्वजा तोरणादिक बँधाये, मार्गमें पुष्पसमूह बिखरा दिए और गाजेबाजोंके साथ तथा भाटोंके जय जय के शब्दोंके साथ पूर्णमहोत्सवसे राजा मधु www.jainistrary.org Jain Educatie mational For Private & Personal Use Only
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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