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चरित्र
मधु राजा और कैटभ युवराजने कुलक्रमसे प्राप्त हुए राज्यको चन्द्र और सूर्यके समान प्रजाके अम्नः | सुखकी अभिलाषा करते हुए भलीभांति चलाया।२१। वे दोनों प्रताप, शूरवीरता, तथा पराक्रमसे
शोभायमान राजा, अपने अनुचर लोगोंके साथ वन्धुके समान वर्ताव करते थे और शरणागतों की रक्षा करते थे ।२२। इनके दोनों चरणोंको शत्रु तथा मित्रोंके राजागण भी अपने मस्तकपर धारण करते थे और इनका पराक्रम जगतमें फैल रहा था ।२३। एकदिन सामन्तराजाओंकी मंडलीके बीच में विराजमान मधुराजाने एकाएक नगरके बाहरसे अाते हुए कोलाहलके शब्द सुने ।२४। तब उसने द्वारपालसे पूछा कि यह क्या कलकलाट सुनाई पड़ रहा है । मैंने ऐसा कोलाहल नगर वा देशमें
आजतक नहीं सुना यह क्या मामला है ? ।२५। तब द्वारपालने विनयसे मस्तक नमाया और हाथ जोड़के निवेदन किया कि, हे राजन् !।२६। यह एक दुष्ट राजा है, जिसकी बड़ी सेना तथा मजबूत किला है । वह आपके सारे देशको विध्वंस किये डालता है। क्योंकि वह प्रतिदिन धूर्ततासे आता है
और मनुष्य तथा पशुओंके झुण्ड के झुण्ड पकड़के लेजाता है। तथा नगर और ग्रामोंमें आग लगा जाता है ।२७-२८। जब कभी उसका साम्हना करने को बड़ी सेना जाती है, तब वह अपने नगरके किलेमें जाकर छिप जाता है और वहींसे निर्भय होकर गर्जता है ।२६। वह अयोध्या नगरीके बाहरकी सब वस्तुएँ हरके ले जाता है, इसी कारण वहांके रहने वालोंको अपने-अपने प्राणों की चिंता पड़ रही है और वे यह हल्ला मचा रहे हैं ।३०। सभाके बीचमें द्वारपालके मुख से कोलाहलका कारण सुनतेही राजा मधु कोपको प्राप्त हुआ उसने अपनी भौंहें चढ़ाली और लाल मुँह करके बोला, हे कुलीन मन्त्रियों ! तुमने आज पर्यन्त मुझे यह वार्ता क्यों नहीं सुनाई ? ।३१-३२। तब मंत्रियोंने उत्तर दिया, हे राजन् ! आपकी बाल्यावस्था थी और वह शत्रु किला सेनादिक कारणसे अनेक राजाओंसे भी जोता नहीं जाता था, ऐसा जानकर हमने आपके समक्ष इसकी चरचा नहीं की थी।३३।
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