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________________ प्रद्युम्न चरित्र भ्रमर बनता है । स्वर्गके देव सदाकाल सुख समुद्र में मग्न रहते हैं, नव यौवन अवस्था में बने रहते हैं, चर्मसंकोच (बली) तथा सफेद बालकर रहित, सप्तधातु वर्जित उनका शरीर रहता है, और पदार्थ की इच्छा होते ही कण्ठमेंसे अमृत झरता है, जिससे तृप्ति हो जाती है ।९७-६९। पुण्यके उदयसे स्वर्गसम्बन्धी भोग भोगते हुए बहुतसा समय व्यतीत हो जाता है, जो मालूम भी नहीं पड़ता।२००। इसी पुण्य के प्रभावसे स्वर्ग में देव होकर वा वहांसे चयकर ढाईद्वीपमें राजादिक होकर सम्यक्त्व सहित यह पाणी सुख चैनसे रहता है और परम्परासे मोक्षका अधिकारी बन जाता है ।२०१॥ पुण्यके प्रभाव से उत्तम पर्यायको धारणकर यह पाणी कामदेवके समान सुन्दर, बड़े राज्यका स्वामी, अनेक गुणोंका धारक, ज्ञानवान, प्रतापवान, कीर्तिवान, कांतिवान, धैर्यवान भाग्यवान और शूरवीर होता है और कहां तक कहा जाय, तीनलोक में जितने उत्तम पदस्थ वा जितनी शुभ सामग्री हैं, वह सहजमें ही पुण्यात्मा जीवको प्राप्त होती हैं, ऐसा जानकर भव्यजीवोंको निरंतर पुण्यका संचय करना चाहिये।२०२। इति सोमकीर्तिआचार्यविरचित प्रद्युम्न चरित्र संस्कृतग्रन्थ के नवीन हिन्दीभाषानुवादमें प्रद्युम्नकुमारके तीसरे भव सम्बन्धी मणिभद्र, पूर्णभद्र श्रेष्ठिपुत्रोंका धर्मस्वरूपश्रवण, स्वर्गलोकगमन आदिके वर्णन वाला सातवाँ सर्ग समाप्त हुआ। अष्टमः सर्गः जिस सुप्रसिद्ध कौशल देशका ऊपर वर्णन कर आये हैं, उसी देवदानव-सेवित नगरमें पद्मनाभ नामका राजा राज्य करता था, जो रूपवान और प्रख्यात था तथा जिसने अपने प्रतापसे शत्रुओंको जीतकर दशों दिशाओंमें अपनी कीर्ति फैला दी थी ।१.२। जिसप्रकार स्वर्गमें इन्द्र और पातालमें शेषनाग राज्य करता है उसी प्रकार यह बलाब्य राजा न्याय नीतिसे भूतल पर राज्य करता था। जिसकी रूपवती श्यामवर्णा गजगामिनी, नवयौवना, सर्वाङ्गसुन्दर, चित्तको चुरानेवाली धारणी नामकी रानी थी। जिसप्रकार इन्द्रको इन्द्राणी और महादेवको पार्वती अत्यन्त प्रिय थी उसी प्रकार राजा Jain Educatiu international For Private & Personal Use Only www.jahlibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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