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________________ प्रद्यम्न १२० कृपा करो और जिनदीक्षा ग्रहण कराओ, जिससे संसार के जन्ममरणकी झंझट से छूटकर में निराकुल अवस्था को प्राप्त हो जाऊँ ॥ १०३ ॥ राजा अरिंजय के वचनों को सुनकर श्रीमहेन्द्रसूरिने कहा हे नृपति ! तूने दीक्षा ग्रहण करनेका बहुत उत्तम विचार किया है । १०४ | ऐसा विचार पुण्यवानोंके सिवाय दूसरोंके चित्तमें उत्पन्न नहीं होता जिनदीक्षा के प्रभाव से यह जीव कर्म काटके मोक्ष पदको प्राप्त कर सकता है— फिर स्वर्गादिककी तो कथा ही क्या है ? । १०५ | तुम्हें ऐसा दृढ़ निश्चय करके जैनी दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण करना चाहिये । मुनिराज के मुखारविंद से राजा अरिंजयने ऐसे वचन सुनकर अपने पुत्रको राज्यका कारभार सौंप दिया । १०६ । और अनेक राजाओंके साथ सर्वप्राणियोंकी हितकारिणी स्वर्गमोक्षकी देनेवाली दीक्षा ग्रहण की । १०७ । राजाकी वैराग्यपरिणति और मुनिराजका धर्मोपदेश सुनकर विचक्षण बुद्धि के धारक समुद्रदत्त सेठको भी वैराग्य उत्पन्न हुआ । सो उसने भी संसारकी लीला समझकर अपने दोनों पुत्रोंको घरका कारभार सौंप दिया और सर्व परिग्रहसे रहित होकर जिनदीक्षा धारण कर ली । ।१०८-१०६। तत्पश्चात् समुद्रदत्त सेठके मणिभद्राक्ष और पूर्णभद्र नामक दोनों श्रेष्ठ तथा चतुर पुत्रों ने मुनिराजको नमस्कार किया और सर्व हितकारी गृहस्थोंका धर्म पूछा कि, १० हे महाराज ! हम अभी आपकी उपदेशी हुई जिनदीक्षा ग्रहण करने को असमर्थ हैं, इसलिये कृपाकरके गृहस्थियोंका धर्म जो कल्पवृक्ष के समान स्वर्गादिक तथा परम्परासे मोक्षका देनेवाला है, हमें बतलाइये | ११ | तब मुनिराज ने कहा, हे श्रेष्ठपुत्रों ! आदरपूर्वक एकचित्त होकर सुनो, मैं संक्षेपमें गृहस्थ धर्मका वर्णन करता हूँ | १२ | जो संसार कूपमें गिरनेवाले जीवोंको हस्तावलम्बन देकर शीघ्र ही धारयति अर्थात् धारण करता है - बचा लेता है, उसे धर्म कहते हैं | १३ | जो सर्व प्राणियोंको अपनी आत्मा के समान समझता है, पर द्रव्यको मिट्टी के ढेले के तुल्य गिनता है और दूसरे की स्त्रीको माताके सदृश समझता है, उसीका Jain Educatio international For Private & Personal Use Only चरित्र www.jaelbrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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