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________________ प्रद्युम्न । चरित्र ख्यात प्रदेशी है, आकाशके समान अमूर्तीक है और कर्मलेपकर रहित सिद्धस्वरूप है ।९०। प्रात्माका इस प्रकार ध्यान करना चाहिये कि यह नित्य, विनाश रहित, वृद्धावस्था रहित, जन्म रहित, कर्मकलङ्क रहित, बाधा रहित, गुण रहित वा गुण सहित ।९१। जब आत्माको हृदयमें कर्मों से रहित ध्याते हैं, तब निश्चयसे कर्मों का क्षय होता है और जो सब कर्मों का क्षय हो जाना है, वही मोक्ष है, इस प्रकार हे राजन् ! तेरे प्रश्नानुसार मैंने संक्षेपसे बन्ध और मोक्षका स्वरूप वर्णन किया है। इसका भावार्थ यह है कि कर्मवन्धनकी प्रेरणासे यह जीव नरकादि गतिको प्राप्त होता है और वहांके घोर दुःख सहता है और जब कर्मबन्धनसे सर्वथा छूट जाता है, तब मोक्षावस्थामें विनाश, भय, जरा, जन्म, वियोग, रोग, शोकादिसे वर्जित हो जाता है ।६२-६५। इसप्रकार शुद्ध शान्त स्वभावके धारक, हितमितभाषी मुनिवर श्रीनन्दिवर्धन महाराज राजाके प्रश्नोंका उत्तर कहके मौनसे तिष्ठे । राजा को मुनिराजके वचनोंसे अपार आनन्द हुअा।।६। अथानन्तर-राजा अरिंजयने प्रसन्नचित्तसे अपने हाथ जोड़े और मुनिगजसे निवेदन किया, हे प्रभो ! प्राणीमात्रके हितैषी ! आपके वचनानुसार मैंने संसारका स्वरूप स्पष्ट रोतिसे जान लिया है कि, यह संसार क्षणभंगुर और साररहित है। इसमें प्रीति करना अनुचित है। शरीर सैकड़ों रोगों से भरा हुआ है, पंचेन्द्रिय के विषय विष के समान हैं, ७-६९। यौवन क्षणस्थायीं है, संयोग स्वप्न के समान निःसार हैं और सुख दुःखमयी जीवन शरदऋतुके मेघके समान तत्काल नष्ट हो जाने वाला है।१००। शरीर सम्बन्धी भोग किंपाक (इन्द्रायण ) फलके समान अन्तमें गड़े दुखदायी हैं और लक्ष्मी-धनसम्पत्ति हाथीके कानोंके समान चंचल है ऐसा मुझे निश्चय हो गया है । इसलिये हे महामुने ! संसार शरीरभोगादिसे मेरा चित्त विरक्त होगया है और आपके चरणकमलके प्रसादसे में जिन दीक्षा लेना चाहता हूँ जो ससार समुद्र से पार उतारने वाली है ।१०१-१०२। है प्रभा ! आप मुझपर Jain Educa international For Private & Personal Use Only www.jadibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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