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________________ चरित्र अरिंजयके पास पहुँचा। राजद्वारपर द्वारपालकी आज्ञा लेकर माली भीतर गया । सो पहले उसने दूरसे ही महाराजको नमस्कार किया और फिर द्वारपालकी आज्ञासे सन्मुख जाकर फलफूलादि भेंट किये । ।५९-६०। फिर बोला हे राजन् ! अपने रमणीक बागमें, जिसमें मत्त कोयले कूकती हैं एक संयम रत्नसे सुशोभित महासाधु पधारे हैं । जिनके शुभागमन से वृक्षोंमें सर्व ऋतुके फलपुष्पादि आ गये हैं। उन प्रभावशाली मुनिराजकी कृपासे महाराज ! आप चिरकाल राज्य करो और सुखसे विराजो। मालीके मुखसे ऐसे समाचार सुनते ही राजा अरिंजयका हृदय प्रफुल्लित एवं हराभरा होगया। उसने उसी समय अपने सिंहासनसे उठ, जिस दिशामें मुनि विराजे थे, सात पेंड आगे जा विनयपूर्वक परोक्षरूप प्रणाम किया। फिर माली को पंचांग प्रसाद (पांचों कपड़े) तथा षोड़श आभरण उतारकर दे दिये और उसे प्रसन्न करके वनको विदा कर दिया । पश्चात् राजाने आनन्दभेरी बजवाकर नगरभर में यह वार्ता प्रगट करवादो । ज्यों ही सत्पुरुषों को खबर मिली, त्यों ही वे बड़ी प्रसन्नता से पूजाकी सामग्री लेकर जिनभक्तिके वशीभूत हो मुनिवन्दनार्थ राजा के दरवाजे पर आ गये। जब राजाने देखा कि बहुतसे भाई एकत्रित हो गये हैं, तब वह कुटुम्बसहित हाथीपर असवार होकर मुनिवन्दना को रवाना हुआ।६१-६७। और सब जिनधर्म परायण लोग राजा के साथ २ चले । जब राजा अरिंजय प्रमद उद्यानके पास पहुँचा, तव हाथीसे नीचे उतर आया। उसने मुनिभक्तिसे राज्यविभवको शरीरपरसे उतार दिया और नम्रतासे महेन्द्रसूरि मुनिराजके पास जाकर नमस्कार करके गुरुभक्ति सहित तीन प्रदक्षिणा दी पश्चात् संघके समस्त मुनियों के सहित गुरुको पंचांग नमस्कार करके सामने बैठ गया।६८-७०। जब सब भव्यजीव यथोचित स्थानमें बैठगये, तब राजा अरिंजय हाथ जोड़कर और मस्तक नमाकर श्री महेन्द्रसूरि मुनिराज से बोले हे स्वामी ! बंध और मोक्षका स्वरूप क्या है ? संसारी जीवोंको For Private & Personal Use Only www.jainary.org Jain Educatie International
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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