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________________ चरित्र विद्याभ्यास किया। जब वे अनेक शास्त्र, पुराण, सिद्धान्त ग्रन्थ सीखकर विद्या वा कलामें प्रवीण हो प्रद्युम्न गये और सोलह वर्षकी अवस्थाको प्राप्त हो गये, तब माता पिताने अपने नवयौवन सम्पन्न तथा स्वज नोंको आनन्दकारी पुत्रोंका उन्हें युवावस्थाको प्राप्त हुने देखकर अपने कुलके योग्य उत्तम कन्याओंके साथ विवाह कर दिया। इससे माता पिताको बड़ी भारी प्रसन्नता हुई । इसप्रकार धर्म अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थों को निरन्तर पालन करते हुए तथा सुखसागरमें निमग्न रहते हुए उन दोनों पुत्रोंने अपना काल व्यतीत होता न जाना ।४३.४८। कुछ दिन बाद नगरके निकटवर्ती प्रमद उद्यान में महेन्द्रसूरि नामक जगत्प्रसिद्ध मुनिराज । पधारे. जो निर्दोष थे. मति श्रत अवधि ज्ञानके धारक थे और अनेक कलाओंमें कुशल थे। उनके संग और भी बहुत मुनिजन थे।४६-५०। मुनिवरके शुभागमन से बगीचेकी अनोखी शोभा हो गई, तरह २ के वृक्ष उत्तम पत्तों फूलों और फलोंसे लद गये।५१॥ झाड़ोंमें षट्ऋतुके फल फूल लग गये, उनपर भ्रमर गुजारने लगे, मानों मुनिराजके समागम होने से वे धनी हो गये ५२। गाय और व्याघ्रके, बिल्ली और हंसके, हिरणी और सिंहके, मोर और सांप आदिके बच्चे व इसी प्रकार और भी विरोधी जंतु अपनी जातिका स्वाभाविक वैरभाव भूलकर मुनिमहाराजके संघके कारण हिल मिलकर क्रीड़ा करने लगे।५३-५४। थोड़ी देर में उस उपवनकी रक्षा करनेवाला माली वहां आया और ऋतुसमय को उल्लंघन कर फूल, फल, वृक्षोंको देखकर चकित हो विचारने लगा कि, ये परिवर्तन कुछ न कुछ शुभ अशुभ सूचक हैं।५५-५६। इसके कारणकी तलाशीमें चहुंओर घूमकर देखने लगा, तब उसे मालूम हुआ कि, एक मुनिराज संघसहित विराजे हुए हैं । मालीने मुनिवरके दर्शन कर निश्चय कर लिया कि यह सब इन्हींका माहात्म्य है, जिससे बगीचेकी विचित्र शोभाको देखकर अचम्भा होता है ।५७-५८॥ इस बातकी खबर देनेके लिये वह माली शीघ्र बगीचे मेंसे सर्व ऋतुके फलफूल लेकर राजा Jain Educatonemational For Private & Personal Use Only www.ja orary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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