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प्रद्यम्न
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शत्रुयोंका जीतनेवाला, वैरियोंका नाश करनेवाला और शरणागत प्राणियोंकी रक्षा करनेवाला था । | १६ | जिसके पास हजारों हाथी थे और अनेक प्रकारके घोड़े रथादिक थे जिनकी संख्याका कुछ पार न था | २० | जिसके नौकर चाकर भक्तिवान, शक्तिवान, कुलीन, कुलपरम्परासे कार्य करनेवाले और शत्रुराशिके विध्वंस करनेवाले थे । २१ । वह राजा उत्तमोत्तम गुण वा शुभ लक्षणों को धारकर, कुबेर के समान द्रव्यवान, प्रजापालनमें तत्पर और निर्दोष था | २२ | इसके दान देनेकी उदारताको देखकर कल्पवृक्ष लज्जित हो गये और इस प्रकार मुँह छिपाकर चले गये कि आज तक पृथ्वीपर पीछे न आये | २३ | प्रजाका पालन करनेमें प्रवीण, स्त्रियोंके नेत्र वा मन चोरनेवाले, कामदेव के समान सुन्दर देहवाले इस राजाने भली-भांति पृथ्वीपर राज्य किया । २४ | इस राजाकी प्रियंवदा नामकी गुणवती रानी थी जो अपने भर्तारको ऐसी प्यारी थी जैसे इन्द्रको इन्द्राणी और चन्द्रमाको रोहिणी | २५ | यह रानी रिंजय राजाकी बड़ी भक्त थी और बड़ी धर्मात्मा प्रेमकर्म में आसक्त पतिव्रता सर्वगुणसम्पन्न शुभलक्षणों की धारक मृत समान मीठे वचन बोलनेवाली और सुन्दरता के सर्वलक्षणों से मण्डित थी ।२६-२७।
अयोध्यापुरीमें एक समुद्रदत्त नामका सेठ रहता था जो पुण्यात्मा श्रावकोत्तम निर्दोषवंशसे उत्पन्न गुणवान शीलवान शंका कांचादि पच्चीस दोषवर्जित सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान वा सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रय से मण्डित षट्कर्मको नित्य पालने वाला इन्द्रके समान भक्तिसे जिनपूजा करनेवाला श्रावकोंकी त्रेपन किया पालनेवाला और क्षमा मार्दव आर्जव आदि दश धर्मों को धारण करनेवाला था । २८-३०। वह गृहस्थोंके देशव्रत पालता मिथ्यात्वको टालता और सर्वदा उत्तम मध्यम जघन्य पात्रोंको नवधा भक्तिसै दान दिया करता था । ३१ | इसके सिवाय वह सेठ गृहस्थधर्मकी क्रियाके आचरण में बड़ा चतुर था जैनशास्त्रोंके रहस्य को जाननेवाला था देवशास्त्रगुरु का उपासक और दयालु था |३२| उसकी
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