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चरित्र
भी किसीका तिरस्कार नहीं करता और आतंक व्याधि आदि नामनिशानको भी नहीं हैं ।१०। कौश| लदेशके निवासी सज्जन कुबेरके समान धनवान, धर्मकर्मको भलीभाँति आचरनेवाले न्याय मार्गसे चलनेवाले और प्रभावशाली गुणोंके धारक थे ।११।
ऐसे कौशलदेशमें अयोध्या नामकी एक प्रख्यात नगरी है जो स्वर्णपुरीक समान रमणीक थी तथा देव पूजादिक पुण्यकर्मो कर बड़ी सुन्दर दीख पड़ती थी ।१२। जिसे श्रीनाभिराज के पुत्र ऋषभनाथजी प्रथम तीर्थकरके जन्मोत्सवमें कुवेरने रची थी। जिसके चहुँऔर मजबूत किला होनेसे उसमें शत्रुओंका प्रवेश नहीं हो सकता था। जिसमें प्रोरसे छोरतक पुण्यात्मा जीव बसते थे तथा कोई भी पापात्मा नहीं दिखाई देता था।१३-१४। जहांके मनुष्य पूर्णमासीके चन्द्रमाके समान शोभायमान थे। इतनी विशेषता थी कि चन्द्रमा सुवृत्त अर्थात् गोल होता है और वहांके निवासी सुवृत्त अर्थात् शुद्धव्रतादिकके पालनेवाले थे, चन्द्रमा कलंक सहित है और वे मनुष्य किष्कलंक अर्थात् निर्दोष थे, चन्द्रमा सोलह कलाओंका धारक होता हैं और वे बहत्तर कलाके धारक थे, चन्द्रमा कृष्ण पक्ष में घटता है, परन्तु वहांके मनुष्यों के गुण सदा बढ़ते रहते थे, चन्द्रमा दोषाकार अर्थात् रात्रिका करनेवाला होता है, परन्तु मनुष्य दोषाकार अर्थात् अवगुणी नहीं थे ।१५। जहांके प्रत्येक घरोंमें गीत, नृत्य, कला केलि, लीला, कटाक्ष विक्षेपत्रादि विभ्रमसे सुशोभित और रूपवती स्त्रियां थीं ।१६। जहांकी निपुण प्रजा षट्कर्मको पालन करती थी श्रोह जहां त्यागी, गुणी, शूरवीर, जिनधर्मपरायण धर्मात्माओं की बड़ी संख्या पायी जाती थी।१७। जिस अयोध्यापुरीमें तीर्थकर चक्रवर्ती श्रादि महान् पुरुषोंका जन्म होता है और जहां चतुर्निकायके देव आकर जन्मकल्याणादि महोत्सव करते हैं, उनकी शोभा हम कहाँतक वर्णन करें।१८।
इस अयोध्यापुरीमें अरिंजय नामका राजा राज्य करता था, जो यथार्थमें 'अरिंजय' अर्थात्
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