SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरित्र १०८ है। जिसने जिसे पूर्वजन्ममें दुःख दिया है वह उसे इस जन्ममें (पलटेमें) दुःख देता है और जिसने पूर्वभवमें जिस जीवका उपकार किया है वह इस भवमें उसका प्रत्युपकार करता है । यह यथार्थ बात है। | पूर्वभवमें जो कर्म उपार्जन किया है वही सुख दुःख, लाभ अलाभ जय पराजय करने में कारणभूत होता है, ऐसा जानकर किसीप्रकार दोष नहीं देना चाहिये । पुत्रों ! तुमने मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं किया है, इस कारण इस बातकी तुम रंच मात्र भो चिता मत करो।” मुनिराजके वचनामृतको सुनते ही दोनों विप्रपुत्र वैराग्यसे विभूषित हो गये उन्होंने बारम्बार मुनिराजको नमस्कार करके कहा, हे दयासागर ! हमारी यही प्रार्थना है कि आप धर्मरूपी गृहके सुदृढ़ स्तम्भ हो, आपका शरीर धर्मसाधन और श्रात्मकल्याणका साधनभूत है और हमने दुर्बुद्धिसे आपके ऐसे पूज्य शरीरको विनाश करने का विचार किया था, जिसका वज्र पापबध हुअा होगा इसमें सन्देह नहीं इसलिये कृपाकर हमें कोई ऐसा व्रत, जप, तप बताओ, जिसके पुण्योदयसे यह हमारा कर्मबन्धन शिथिल हो जाय ।७६.९०। तब सात्विकी मुनिराजने उत्तर दिया, द्विजपुत्रों ! मैं तुम्हें धर्मके कारण व्रतादि सुनाता हूँ जो पापरूपी वृक्षको कुल्हाड़ीके समान काट डालते हैं और जो धर्म महावृक्षके बीजभत हैं ।९१। रत्नत्रय धर्ममें प्रधानभूत प्रथम सम्यग्दर्शन है, जो पच्चीस दोषोंकर रहित और निःशंका, नि कांक्षा आदि आठ अंगोंसहित होता है, अणुव्रत पांच प्रकारका है,-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहपरिमाण । शिक्षाव्रत चार प्रकार का है,:-देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्त्य । गुणव्रत तीन प्रकार का है:-दिग्वत अनर्थदंडव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत । इस प्रकार गृहस्थी श्रावकोंके पालने योग्य सागारधर्म १२ प्रकारका है । इसके सिवाय रात्रिभोजनत्याग और दिवसमैथुनत्याग करना चाहिये षट्कर्म अर्थात् देवपूजा गुरु उपासना स्वाध्याय संयम तप और दान भी प्रतिदिन करना चाहिये । तीन मकार अर्थात् मद्य मांस मयुका त्याग अतीचाररहित करना चाहिये । प्राचार Jain Educal international For Private & Personal Use Only www.jailembrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy