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________________ चरित्र । ज्यों ही उन्होंने मुनिपर तलवार उठाई, त्यों ही क्षेत्रपालने उन्हें कील दिया। यह वार्ता सुनते ही अशुन राजा अचंभित होता हुअा अपने स्वजनों सहित देखनेको वनमें गया। तब उसने द्विजपुत्रोंको वैसे ही कीलित देखा, तब चकित हो गया। उस समय वहां मनुष्य इसप्रकार वचन बोलरहे थे,--देखो इन दुष्टोंको क्या सूझी थी, जो सर्व प्राणियोंके हितकर्ता, धर्मधुराके आधार, जिनेन्द्रके मुखारविन्दसे समु. त्पन्न धर्मके स्तम्भ, दयामूर्ति ऐसे मुनिका ही वध करनेको उतारू हो रहे थे। इन्हें धिक्कार है। इत्यादि ।४०-४५। कई मनुष्य द्विजपुत्रोंके घर गये और उनके माता पितासे बोलेः-जरा वनमें जाकर अपने पुत्रोंकी दशा तो देखो उन्होंने कैसा घोर अन्याय करना विचारा था, तुमने भी उनके जगनिंद्य कर्मको सुना होगा ? ऐसे वचन सुनते ही वे चौंक पड़े और पूछने लगे, कहो तो सही हमारे पुत्रोंने क्या किया है तब मनुष्योंने जवाब दिया, लो तुम अपने पुत्रों की करतूत सुनो;-वे दोनों दुष्ट वनमें गये और मुनिपर तलवार चलाने लगे उसी समय यक्षराजने पापियों को जहांका तहां कील दिया है । यह सुनते ही माता पिता बहुत घबराये और तत्काल वनको गये ।४६-४६। . अपने अग्निभूति वायुभूति पुत्रोंको कीलित देखते ही सोमशर्मा और अग्निलाका चित्त दुःखसे भर आया। उनके नेत्रोंसे धारा प्रवाह अाँसुत्रोंकी झड़ी लग गई। वे बोले- "हाय हाय पुत्रों तुम कैसी दुःखकी दशामें पड़े हुए हो” इतना कहकर वे माता पिता सात्विकि मुनिराजके चरणकमलों में पड़ गये और इसप्रकार विनती करने लगेः-हे स्वामी श्राप जीव मात्र पर दया करनेवाले हो कृपा करके मेरे पुत्रोंको जीवनदान दो, यही भिक्षा हम मांगते हैं ।५०-५२। जो अपने उपकारीपर ही भलाई करता है उसे साधु नहीं कहते किन्तु जो बुराईके बदले दूसरे की भलाई करता है, उसीको सत्पुरुष सच्चा साधु कहते हैं ।५३। जब द्विजपुत्रों के माता पिता इसप्रकार रोदन कर रहे थे उसी समय मुनि ___ Jain Educatrinternational २७ For Private & Personal Use Only www.jadibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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