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चरित्र
HERA
देखकर कहने लग जावेंगे कि, मुनिने इनका वध किया है। इसप्रकार वृथा ही दिगम्बर मुनियोंका अपयश जगतमें फैल जायगा । यदि मैं इन द्विजपुत्रोंके शतखण्ड करूं तो यह वाधा खड़ी होती है। विवेक पुरुषोंको ऐसा बर्ताव करना चाहिये, जिससे बिलकुल बदनामी न होवे । इसलिये मैं इन दोनों दुष्टात्माओंको राजा तथा अन्य मनुष्यों के साम्हने अाग्रहपू क मारूंगा। अभी इनका मारना ठीक नहीं है कारण इनकी दुष्टता भी जगतमें प्रगट होनी चाहिये। ऐसा विचारकर अग्निभूति वायुभूति नामक दुष्ट द्विजपुत्रोंको तलवार उठाते हुए जैसेके तैसे ही कील कर वह यक्षाधीश अपने स्थानको चला गया ।३१-३५।
दूसरे दिन सूर्योदयके समय कई श्रावक वा इतर नगर निवासी मुनिदर्शनोंको वनमें गये। तब उन्होंने देखा कि दो मनुष्य अपने हाथमें तलवार लिये हुए मुनिराजके प्राण लेनेको खड़े हैं। परन्तु क्षेत्रपालने इन्हें हतवीर्य करके वहांके वहां कील दिये हैं, जिससे उनका हलना चलना भी बंद हो गया है । इस आश्चर्य जनक तमाशेको देखनेके लिये नरनारी दौड़े चले आते थे, क्योंकि ग्राममें चारों ओर इस की खबर फैल रही थी। द्विजपुत्रोंके दुष्ट कर्मको देखकर सब लोगोंने उनकी बड़ी निन्दा की किअरे पापी दुष्टों तुमने यह क्या असुहावना कार्य करना विचारा ? कल तो तुम विद्वानों के साम्हने शास्त्रार्थमें हार गये थे और तुम्हारे चेहरेका पानी उतर गया था, अब हत्यारों तुमसे कुछ न बन सका तो इनको मारकर बदला लेना चाहते थे ? तुम्हें धिक्कार है धिक्कार है ! ३६-३९।
जब नगरके बाहर कलकलाट मच रहा था. राजाने भी इसकी आवाज सुनी। वह विचारने लगा, क्या बात है ? तब किसी सज्जनने निवेदन किया कि हे राजन् कल वनमें सोमशर्मा विपके पुत्रोंने मुनिसे शास्त्रार्थ किया था, वे समस्त विद्वानोंके साम्हने शास्त्रार्थ में हार गये थे और लज्जित होकर अपने घर लौट आये थे। पश्चात् वे ही दुष्ट कल रातको मुनिराजको मारनेके लिये वनमें गये थे।
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