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________________ प्रद्युम्न सबको दृढ़ श्रद्धान हो गया। उन भस्त्राओंको देखते ही अग्निभूति और वायुभूति दोनों घमण्डी द्विजपुत्रोंका मान गलित हो गया-मुंह उतर गया, उन्होंने लज्जासे अपना मस्तक नीचा कर लिया, || चरित्र उनका कला कौशल्य और वामपच सब उड़ गया।८२-८४। और सब लोगोंने उन्हें धिक्कार ! धिक्कार ! किया तब वे अपना मुंह छुपाकर चुपचाप अपने घर चले गये। जब द्विजपुत्रोंके मां बापने (सोमशर्मा और अग्निलाने) अपने पुत्रोंको प्राया जाना, तब वे क्रोधसे ततायमान होकर जोरसे बोले, रे रे। पापी कुपुत्रों ! तुम हारकर आये हो, यहांसे चले जाओ, हमें मुंह न दिखावो ।८५-८६। हमने तुम्हें बहुत द्रव्य व्यय करके अनेक शास्त्र पढ़वाये, तो भी तुम दिगम्बरसे वनमें शास्त्रार्थमें हार गये ? रे रे मूढ़ कुलक्षणधारी पुत्रों तुम्हारे निमित्चसे पढ़ाने लिखाने पालने तोषनेमें जो द्रव्य हमने खर्च किया है, वह सब व्यर्थ ही गया। तुम दोनोंको हमने पहले ही मना कर दिया था कि, वनमें मत जायो । परन्तु तुमने हमारा कहा नहीं सुना । यदि वनमें गये थे, तो हारके मुंह दिखाने इस नगरमें क्यों आये ? रे मूर्यो यदि तुम मुनिको शास्त्रार्थमें न जीत सके थे, तो शस्त्रसे (हथियारसे) तो जीतना था ? परन्तु तुमसे यह भी नहीं बना, धिक्कार है तुम्हें ।३८७. ३६०। माता पिताके वचनोंको सुनकर अग्निभूति वायुभूति लज्जित और कुछ संतोषित हुए तथा उनके साम्हनेसे मुंह छुपाकर अलग चले गये और परस्पर विचारकरने लगे कि, शास्त्रार्थमें हारनेके पश्चात् अपना भी ऐसा ही विचार था कि मुनिका काम तमाम कर देना ही ठीक है, परन्तु अपन विना माता पिताकी सम्मतिके उस समय ऐसा न कर सके । अब इनकी भी ऐसी ही सलाह है, तो आज ही रात्रिको वनमें जाकर दिगम्बर मुनिका प्राणान्त कर डालना चाहिये ।३६१-३६२। ऐसा विचार कर जब तक रात्रिका समय नहीं आया दोनों द्विजपुत्र अपने ही घर ठहरे । ज्यों ही रात्रि पड़ने लगी, दोनों अपनी २ कमर कस ली । इच्छा की पूर्ण करनेवाली एक २ कामधेनु तलवार प्रत्येकने अपने - Jain Educatinternational For Privale & Personal use only www.unelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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