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________________ कर रक्खा है ? उसे छोड़ दे । ५६-६०। और अपने अमृतस्वरूप वचनोंसे बंधुवर्गों को आश्वासन दे । संसारकी ऐमी ही विचित्र लीला है कि, जो अपनी पुत्री है वह माता हो जाती है, पिता पुत्र हो जाता है, मालिक सेवक हो जाता है, सेवक मालिक बन जाता है, पुत्रवधू पुत्री बन जाती है, पुत्री माता हो जाती है, धनवान निर्धन हो जाता है, दरिद्री धनाढ्य हो जाता है । कुत्ता देव और देव कुत्ता हो जाता है, यह सब कर्मकी विचित्रता है ऐसा जानकर बुद्धिवानों को हर्ष तथा शोक नहीं करना चाहिये । ६१-६४। अब सर्वत्र सुखका देनेवाला और संसारके भयको नष्ट करनेवाला एक धर्म ही करना चाहिये जिससे अन्य जन्ममें पापके फल से उत्पन्न होने वाले और बंधुयोंका वियोग करनेवाले भयंकर दुःख फिर न देखना पड़े । ६५-५५ । श्रीमात्विक मुनिराज के वचन सुनके गूंगे विप्रने उनका बहुतवार अभिनन्दन किया । उसके नेत्रों की धारा निकलकर टपकने लगी । वह दोनों हाथ जोड़कर मुनिवर के चरणों में मस्तक धर कर बड़े विनयसे बोला :- " हे कामरूपी गजेन्द्रको सिंहके समान साधु शिरोमणि आप मेरी प्रार्थना सुनिये :- हे स्वामी संसार समुद्र से पार करनेवाली जिनदीक्षा मुझे शीघ्र ग्रहण कराइये | मुझे इस सार संसार के बन्धुजन, स्त्री, पुत्र, मित्र, धन, धान्य से कुछ प्रयोजन नहीं है । हे भगवन्! मैंने अच्छी तरह इस बात का अनुभव कर लिया है कि यह असार संसार तृणके समान त्यागने योग्य है इसलिये जिससे भववास बसेरा मिट जाय ऐसी जिनदीक्षा मुझे प्रदान करिये” । ६७-७१। सात्विक मुनिराजने बोलते हुए मूक विमको दीक्षा लेने में तत्पर देखकर कहा - "पहले तुम पने माता पिता वा कुटुम्बियोंसे मिलो । उनकी आज्ञा ले आवो तत्पश्चात् तुम्हें दीक्षा दी जावेगी" । मुनिराज के वचनों का उल्लंघन करना ठीक नहीं है ऐसा जानकर तत्काल वह मूक विप्र अपने घर गया। अपने कुटुम्बियों से मिला और बात चीत करने लगा | उसको देखकर माता पितादिक सब Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रद्यम्न ६८ चरित्र www.melibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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