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सब मनुष्योंके साम्हने उसे प्रत्यक्ष किये देता हूँ | ४४ |
प्रवर किमान, जिसका ऊपर वर्णन कर चुके हैं, पानी बरसना बन्द होनेके पश्चात् अपने खेत चरित्र की दशा देखने के लिये गया तो उसे मालूम हुआ कि हल आदि खेतीका सामान प्रचण्ड पवनके
कोरेसे इधर उधर बिखरा पड़ा हुआ है और रस्सी आधी कुचली वा खाई हुई पड़ी है । फिर वहीं कुछ आगे उसने गिरे हुए प्राणरहित दो श्याल देखे । तब वह विप्र निर्दयता से उनपर कुपित हुआ और उनकी खाल खिंचाकर तथा भस्त्रा (भातड़ी) बनाके अपने घर ले आया तथा अपने घर के छप्पर की खूंटीसेकसके बांध कर निश्चिन्त हो गया । ४४-४ ८ । वह खाल अभीतक वहीं बँधी हुई है । यदि किसीको विश्वाम न हो, तो इस गूंगेके घर जाकर यह कौतुक देख आओ |४६ | जो प्रवर नामका विप्र था, उसने अनेक यज्ञ होम जाप्यादि किये थे । इस कारण युके अन्त में मरकर वह मोहके वशसे अपने पुत्रकी स्त्रीके उदरसे उत्पन्न हुआ ! सो इस बालकको अपने घरकी जमीन देखते ही जातिस्मरण हो गया । पूर्व भवकी बात याद आनेसे वषाद करके वह विचारने लगा :- अब मैं क्या करू ? मेरी सब आशा नष्ट हो गई । मोहकी पाश में फँस के मैं अपने ही पुत्रका पुत्र हुआ हूँ। यह पापका ही प्रभाव है। मैं अपने ही पुत्रको पिता और पुत्रवधूको माता कैसे कहूँ ? ऐसी बात बोलते मुझे लज्जा आती है अब क्या करू ं और क्या कहूँ, ऐसी चिन्ता करते २ उसे विचार उत्पन्न हुआ कि गूंगा बनकर मैं अपनी लज्जाको निभा सकूंगा । तदनुसार बाल्यावस्थासे ही उस बालकने मौन धारण कर लिया और वैसी ही गूंगी अवस्था में बढ़ते हुए वह यौवन अवस्थाको प्राप्त हुआ । ५०-५७। हे द्विजपुत्रों अपना वाद विवाद सुननेकी अभिलाषासे वही मृक विप्र मनुष्यों के साथ यहां आया है और इस सभा में देखो, वह बैठा हुआ है । ५८ | तब दयासिन्धु श्रीसात्विकि मुनि महाराजने सब मनुष्यों के सामने उस मूक विप्रको बुलाया - हे प्रवरके पुत्र इधर या तूने अज्ञानतासे वृथा ही क्यों मौन धारण
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प्रद्यम्न
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