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REHEHOREIGHBHISHESHBHEHEIGHBHEHRIENRICHEHEHOSHSHEHEN
बिहिणा पारिय सम्मत्त सुद्धिहेउं च पदइ उज्जो। तह सव्वलोयअरहंतचेइयाराहणोसग्गं ॥ १२ ॥ काउं उज्जोयगरं चिंतिय पारेइ सुद्धसम्मत्तो । पुक्खरवरदीवड्ढे कड्ढइ सुअसोहणनिमित्तं ॥ १३ ॥ पुण पेणवीसोस्सासं उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरियाफलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ १४ ॥ अह सुअसमिद्धिहेउं सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमोकारं सुणइ व देइ व्व तीइ थुइं ॥१५॥ एवं खेत्तसुराए उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई।
पढिऊण पंचमंगलमुवविसइ पमज संडासे ॥१६॥ १ विधिना पारयित्वा सम्यक्त्वशुद्धिहेतोश्च पठति उद्द्योतम् । तथा सर्वलोकार्हच्चैत्याराधनोत्सर्गम् ॥ १२ ॥ कृत्वा उद्योतकर चिन्तयित्वा पारयति शुद्धसम्यक्त्वः। 'पुक्खरवरदीवड्ढं' कर्षति [कथयति] श्रुतशोधननिमित्तम् ॥१३॥ पुनः पञ्चविंशत्युच्छासम् उत्सर्ग करोति पारयति विधिना। ततः सकलकुशलक्रियाफलानां सिद्धानां पठति स्तवम् ॥१४॥ अथ श्रुतसमृद्धिहेतोः श्रुतदेव्याः करोति उत्सर्गम् । चिन्तयति नमस्कारं शृणोति वा ददाति वा तस्याः स्तुतिम् ॥१५॥ एवं क्षेत्रसुर्या उत्सर्ग करोति शृणोति ददाति स्तुतिम्। पठित्वा पञ्चमङ्गलमुपविशति प्रमृज्य सन्दशकौ ॥१६॥ २ पणवीसोसासं-शां. सं. ॥ ३ सुरीए-मु. धर्मसंग्रहवृत्तौ च पृ० ३०॥
SHCHACHCHHETCHEHCHCHHEKSHCHCHCHCHCHCHCHCHCHERSHEHENS
त्यति शुद्धस्यति विधिनाय नमस्कार समुपविशति
॥६९५॥
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